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रत्न परिचय.
परम योगिराज प्रातःस्मरणीय अनेक सद्गुणालंकृत श्री श्री १००८ श्री श्री रत्नविजयजी महाराज साहिब !
आपश्रीका पवित्र जन्म कच्छदेश ओसवाल ज्ञाति म हुवा था. आप बालपणासे ही विद्यादेबीके परमोपासक थे. दश वर्षकि बाल्यावस्थामें ही आपने पिताश्रीके साथ संसार त्याग किया था, अठारा वर्ष स्थानकवासीमत में दीक्षा पाल सत्य मार्ग संशोधन कर-शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीमद्विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराजके पास जैन दीक्षा धारण कर संस्कृत प्राकृतका अभ्यास कर जैनागमोंका अवलोकन कर आपश्रीने एक अच्छे गीतार्थीकि पंक्तिको प्राप्त करी थी. आपश्रीने कच्छ, काठीयावाड, गुजरात, मालवा, मेवाड और मारवाडादि देशों में विहार कर अपनि अमृतमय देशनाका जनताको पान करवाते हुए अनेक जीवोंका उद्धार कीया था इतना ही नहीं किन्तु बाबु गिरनारादि निवृत्तिके स्थानों में योगाभ्यास कर जैनोंसे अनेक गइ हुइ चमत्कारी विद्यावों हांसल कर कइ आत्मावों पर उपकार कीया था ।
- आपका निःस्पृह सरळ शान्त स्वभाव होनेसे जगत के गच्छगच्छान्तर-मत्त. मत्तान्तरके झगडे तो आपसे हजार हाथ दूर ही रहते थे. जैसे आप ज्ञानमें उच्चकोटीके विद्वान थे वेसे ही कविता करनेमें भी उच्चकोटीक आप कवि भी थे आपने अनेक स्तवनों, सज्झायों, चैत्यवन्दनों, स्तुतियों, कल्प रत्नाकरी टीका और विनति शतकादि रचके जैन समाजपर परमोपकार कीया था.
आपको निवृत्तिस्थान अधिक प्रसन्न था। श्रीमदुपकेश गच्छाधिपति श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराजने उपके शपटन (ओशोयों) में ३८४००० राजपुतकों प्रतिबोध दे जैन बना कर प्रथम ही ओसस स्थापन कीया था. उस ओशीयों तीर्थपर आपश्रोने चतुर्मास कर अलभ्य लाभ प्राप्त कीया. जैसे मुनि श्री ज्ञानपुन्दरजीकों ढुंढकमाल से बचाके संवेगी दीक्षा दे उपकेश गच्छका उद्धार करवाया था फीर दोनों मुनिवरोंने इस प्राचीन तीर्थके जीर्णोद्धारमें मदद कर वहांपर जैन पाठशाला, बोडींग, श्री रत्नप्रभाकर झांन भंडार, जैन लायब्रेरी स्थापन करी थी और भी मापकों झानका बड़ा ही प्रेम