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का, आव से ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ८ स्पर्शषाले पु० को लेवे, अगर वर्ण का लेवे तो एक गुण काला दो तीन यावत् अनन्त गुण - काला का लेवे पर्व १३ बोल वर्णादि २० बोल में लगाने से भाव के २६० भांगा, और स्पर्श किया हुषा १, अवगाचा २, अणन्तर अवगाहा ३, अणुवा ४, वादर ५, उर्ध्वदिशीका ६, अधोदिशीका ७, तीर्थमदिशीका ८, आधिका ९, मध्यका १०, अन्तका ११, अणुपूर्वी १२, सविषय १३, निर्व्याघात ६ दिशा व्याघाताश्रीय स्वात् 'तीन दिशी व्यार दिशी पांच दिशी १४, एवं द्रव्यका १, क्षेत्रका १, कालका १२, भाषका २६०, और स्पर्शादि १४, कुल २८८ बोल का पुल औदारिक शरीर पणे ग्रहण करे एवं वैक्रिय, आहारिक परन्तु नियमा छे दिशीका लेवे, कारण दोनो शरीर प्रसनाली में है, और तेजस शरीर की व्याख्या औदारीक शरीर माफिक करना तथा कार्मण शरीर प्यार स्पर्शवाले होनेसे ५२ बोल कम करने से द्रव्यादि २३६ बोलका पुद्गल ग्रहण करे,
जीव श्रोत्रेन्द्रीय पणे २८८ बोलों वैकिय शरीर की माफिक नियमा छे दिशि का पुद्गल ग्रहण करे पर्व चक्षु, घाण, रसेन्द्री भी समझना, स्पर्शेन्द्री औदारिक शरीर की माफिक समझना ।
मन बचन पणे कार्मण शरीर कि माफिक चौफरसी पुनल ग्रहण करे। परन्तु असनाली में होने से नियमा छे दिशी का पुल ग्रहण करे और काययोग तथा श्वासोश्वास औदारीक शरीर के माफिक २८८ बोलका पुद्गल ग्रहण करे, व्याघाताधीव ३-४-५ दिशी का और निर्व्याघात आश्रीय नियमा ६ दिशीका पु० ग्रहण करे, इति । समुचय जीव उपर चौदा ( ६ शरीर, ५ इन्द्रीय ३ योग, १ श्वासोश्वास ) बोल कहा इसी को अब प्रत्येक दंडक पर लगाते हैं।
नारकी, देवताओ में १२ बोल पावे ( आहारीक औदारीक