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(३६) शीघबोध भाग १ लो. ८ मा देवलोक तक दो गतिसे आवे, दो गतिमें जाय। दंडकाश्रयी दो दंडक ( मनुष्य और तिर्यच) के आवे और दो दंडकमें जावे । सातमी नारकी दो गतिसे ( मनुष्य, तिर्यंच ) आवे, एक गतिमें जावे (तिर्यच में ), दंडकाश्रयी २ दंडकको ( मनुष्य, तिर्यंच) आवे, एक दंडक तिर्यंचमें जावे । दश भुवनपति, व्यंतर, जोतिषी, १-२ देवलोक दो गति ( मनुष्य, तिर्यंच ) से आवे, और दो गति (मनुष्य, तिर्यच ) में जावे, और दंडकाश्रयी २ दंडक ( मनुष्य, तिर्यच ) को आवे, और पांच दंडकमें जावे ( मनुष्य, तिर्यंच, पृथ्वि, पाणी, वनस्पति ) ९ वा देवलोकसे सर्वार्थसिद्ध विमानके देव, एक गति ( मनुष्य ) में से आवे एक गतिमें जावे दंडकाश्रयी एक दंडक ( मनुष्य को आवे और एक दंडकमें जावे ( मनुष्यमे )।
पृथ्वि, पाणी, वनस्पति, तीन गति ( मनुष्य, तिर्यंच, देवता ) से आवे, और २ गतिमें जावे ( मनुष्य, तिर्यंच ), दंड. काश्रयो २३ दंडक ( नारकी वर्जी । का आवे. और १० दंडकम जावे : ५ स्थावर, ३ विकलेंद्रिय, मनुष्य, तियेच ) तेउ वायु दो गति ( मनुष्य, तिर्यच ) मेंसे आवे, और एक गति तिर्यंच) में जावे, दंडकाश्रयी दश दंडक ( पूर्ववत् ) को आये और ९ दंडक ( मनुष्य वर्जके ) में जावे । तीन विकलेद्रिय दो गति ( मनुष्य, तिर्यंच ) मेंसे आवे, और दो गति ( मनुष्य, तिर्यंच ) में जावे, दंडकाश्रयी दश दंडक (पूर्ववत् ) को आवे और दश दंडकमें जावे । असन्नि तिर्यच दो गति (मनुष्य, तिर्यच) मेंसे आवे और चार गतिमें जावे, दंडकाश्रयी दश पूर्ववत् आवे और २२ (जोतिषी वैमानिक वर्जी) दंडकमें जावे । सन्नि तिर्यच चार गति में से आवे और चार गतिमें जावे दंडकाश्रयी २४ को आवे और २४ में जावे । असन्नि मनुष्य दो गति ( मनुष्य, तिर्यच ) को आवे दो गतिमें जावे। दंडकाश्रयी ८ दंडक (पृथ्वि, पाणी, वनस्पति, ३