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व्यवहार सम्यक्त्वके ६७ बोल.
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अनुकम्पा करनी अर्थात् दुःखी जीवको सुखी करना (५) आसता - त्रैलोक्य पूजनीय श्री बीतरागके वचनोंपर दृढ श्रद्धा रखनी, fearfect विचार, अर्थात् अस्तित्व भाषमें रमण करना। यह व्यवहार सम्यक्त्वका लक्षण है। जिस बातकी न्युनता हो उसे पूरी करना ।
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(६) भूषणके पांच भेद - १) जिन शासन में धैर्यवंत हो। शासनका हर एक कार्य धैर्यता से करें । (२) शासन में भक्तिवान हो ( ३ ) शासनमें क्रियावान हो (४) शासन में चातुर्य हो । हर एक कार्य ऐसी चतुरताके साथ करे ताके निर्विघ्नता से हो ( ५ ) शासन में चतुर्विध संघकी भक्ति और बहुमान करनेवाला हो । इन पांच भूषणोंसे शासनकी शोभा होती है।
(७) दूषण पांच प्रकारका - (१) जिन वचन में शंका करनी (२) कंखा- दूसरे मतका आडम्बर देखके उनकी वांच्छा करनी (३) वितिमिच्छा - धर्म करणीके फलमें संदेह करना कि इसका फल कुछ होगा या नहीं । अभीतक तो कुछ नहीं हुवा इत्यादि (४) पर पाखंडी से हमेशां परिचय रखना ( ५ ) पर पाखंडीकी प्रशंसा करना ये पांच सम्यक्त्वके दूषण है । इसे टालने चाहिये।
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(८) प्रभावना आठ प्रकारनी - (१) जिस कालमें जितने सूत्रादि हो उनको गुरुगमसे जाणे वह शासनका प्रभाविक होता है (२) बड़े आडम्बर के साथ धर्म कथाका व्याख्यान करके शासनकी प्रभावना करें (३) विकट तपस्या करके शासनकी प्रभावना करे (४) तीन काल और तीन मतका जाणकार हो (५) तर्क, विः तर्क, हेतु, वाद, युक्ति, न्याय और विद्यादि वलसे वादियोंको शास्त्रार्थमें पराजय करके शासनकी प्रभावना करे (६) पुरुषार्थी पुरुष दिक्षा लेके शासनकी प्रभावना करे (७) कविता करने की
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