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व्यवहार सम्यक्त्व के ६७ बोल. (७) लोको अधिक विस्तार कीतनी बखत बोजारूप हो जाता है वास्ते यह ३५ बोल कंठस्थ करके फीर विमानोंसे विस्तारपूर्वक समझके अपनी आत्माका कल्याण अवश्य करना चाहिये । शम् ।
थोकडा नं० २.
(व्यवहार सम्यक्त्वके ६७ बोल) इन सडसठ बोलोंको बारह बार करके कहेंगे-(१) सहहणा ४ (२) लिंग ३ (३) विनय १० प्रकार (४) शुद्धता ३ (५) लक्षण ५ (६) भूषण ५ (७) दोषण ५ (८) प्रभाषना ८ (९) आगार ६ (१०) जयणा ६ (११) स्थानक ६ (१२) भावनो ६ इति।
(१) सदाणा चार प्रकारकी-१) पर तीर्थीका अधिक प. रिचय न करे (२) अधर्म प्ररुपक पाखंडीयोंकी प्रशंसा न करे (३) स्वमतका पासस्था, उसन्ना और कुलिंगादिकी संगत न करे. इन तीनोंका परिचय करने से शुद्ध तत्वकी प्राप्ति नहीं हो सकती (४) परमार्थको जाणनेवाले संविन गीतार्थकी उपासना करके शुद्ध प्रद्धाको धारण करें।
(२) लिंगका तीन भेद-(१) जैसे तरुण पुरुष रंग राग उपर राचे वैसे ही भव्यात्मा श्री जिन शासनपर राचे (२) जैसे क्षुधा तुर पुरुष खीर खांडयुक्त भोजनका प्रेम सहित आदर करे वैसे ही वीतरागकी वाणीका आदर करे (३) जैसे व्यवहारीक ज्ञान पढने
की तिव्र इच्छा हो और पढानेवाला मिलनेसे पढ़ कर इस लोकमें . सुखी होवे वैसे ही वीतरागके आगमोंका सुक्ष्मार्थ नित नया ज्ञान
सोखके लोक और परलोकके मनोवांच्छत सुखको प्राप्त करें।