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शीघ्रबोध भाग १ लो.
१४ तत्व विचार में निपुण हो । तस्वमें रमणता करे । १५ जिन्होंके पास धर्म पाया हो उन्होंका उपकार कभी भुलना नहीं परन्तु समयपाके प्रति उपकार करे ।
थोकडा नम्बर १
( मार्गानुसारीके ३५ बोल )
( १ ) न्यायसंपन्न विभव - न्यायसे द्रव्यं उपार्जन करना परन्तु विश्वासवात स्वामिद्रोही, मित्रद्रोहो, चौरी, कुड तोल, कुड माप आदि न करे। किसीकी थापण न रखे खोटा लेखन बनावे महान् आरंभवाले कमदानादि न करे। अर्थात् लोक विरुद्ध कार्य न करे ।
(२) शिष्टाचार - धार्मीक नैतिक और अपने कुलकि म र्यादा माफिक आचार व्यवहार रखना । अच्छे आचारवालोंका संग और तारीफ करना ।
( ३ ) सरिखे धर्म और आचार व्यवहारवाले अन्य गोत्रीके साथ अपने बचका विवाह (लग्न) करना, दम्पतिके आयुष्यादिका अवश्य विचार करना अर्थात् बाललग्न, वृद्धलग्न से बचना और दम्पतिका धर्म-जीवन सामान्य धर्मसे ही सुखपूर्वक होता है । वास्ते सामान्यधर्म अवश्य देखना ।
( ४ ) पापके कार्य न करना अर्थात् जिसमें मिथ्यात्वादिसे चिकने कर्मबन्ध होता है या अनर्थ दंड-पाप न करना और उपदेश भी नही देना ।
( ५ ) प्रसिद्ध देशाचार माफिक वर्ताव रखना उद्भट