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शीघ्रबोध भाग ५ वा.
थोकडा नं.५६
( श्री भगवती सूत्र श० २६) ४७ बोल प्रत्येक दंडक पर शतक २६ उद्देशे पहिले में विष. रण करचूके है. उनबोलों के जीव ( १ ) एक साथे कर्म भोगवणा मांडिया ( सुरूकिया ) और एक साथे पूरण किया (२) एक साथे भोगवणा मांडिया और विषमता से पूराकिया (३) विषम भोगवणा मांडिया और विषम पूराकिया (४) विषम भोगवणा मांडिया और साथे पूरा किया. यह चारो भांगे कहना क्योंकि नीव ४ प्रकार के है यथा
(१) सम आयुष्य और साथे उत्पन्न हुआ. (२) सम आयुष्य और विषम उत्पन्न हुआ (३) विषम आयुष्य और साथे उत्पन्न हुआ. (४) विषम आयुष्य और विषम उत्पन्न हुआ. यह चार प्रकार के जीवोंमें कौंन २ सा भांगा पाबे सो दिखाते है.
(१) सम आयुष्य और साथे उत्पन्न हुआ जिसमें भांगा पहिला स० स० (२) सम आयुष्य और विषम उत्पन्न हुआ जिसमें भांगा दूसरा स० वि० (३) विषम आयुष्य और साथे उत्पन्न हुआ जिसमें भांगा तीसरा. वि. स. (४) विषम आयुष्य और विषम उत्पन्न हुआ जिसमें भांगा चोथा, वि. वि० । यह आयुष्य कर्म की अपेक्षा से चार भांगा होता है. इति प्रथमोदेसा।
दूसरा उदेशा अणंतर उववन्नगा का है. जिसमें भांगा २ पहिला और दूसरा यहां प्रथम समय की अपेक्षा है. इसी माफक चौथा, छठ्ठा, और आठमां उद्देशा भी समझ लेना. शेष १-३-५७-९-१०-११ यह सात उद्देशों की व्याख्या सश है (चारो भांगा . पावे ) इति श० २९ शतक ११ उदेसा समाप्तम्.
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