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शीघबोध भाग ५ बां. थोकडा नम्बर ५० .
(मूत्र श्री पन्नवणाजी पद २५)
(बांधतो वेदे) मूल कर्म प्रकृति आठ यावत् पद २४ के माफिक समझना ।
समुच्चय एक जीव ज्ञानावर्णीय कर्म बांधतो हुवो नियमा आठ कर्म वेदे कारण ज्ञानावरणीय कर्म दशमा गुणस्थान तक बांधे है वहां आठ ही कर्म मौजूद है सो वेद रहा है एवं नरकादि २४ दंडक समझना।
समुच्चय घणा जीव ज्ञानावर्णीय कर्म बांधते हवे नियमा आठ कर्म वेदे यावत् नरकादि २४ दंडकमें भी आठ कर्म वेदे।
एवं वेदनीय कर्म वर्जके शेष दर्शनावर्णीय, मोहनीय, आ. युष्य. नाम, गोत्र, अन्तराय कर्म भी ज्ञानावर्णीय माफिक समझना।
समुच्चय एक जीव वेदनीय कर्म बांधे तो ७-८-४ कर्मवेदे कारण वेदनोय कर्म तेरहवांगुणस्थान तक बांधते है। एवं मनुष्य भी समझना शेष २३ दंडक नियमा ८ कर्म वेदे। __ समुच्चय घणा जीव वेदन। कर्म बांधते हुवे ७ ८-४ कर्म वेदे एवं मनुष्य । शेष २३ दंडक के जीव नियमा आठ कर्म वेदे।
समुच्चय जीव ७-८-४ कर्म वेदे जिसमें ८-४ कर्म वेदनेवाले सास्वता और ७ कर्म वेदने वाले असास्वता जिसका भांगा ३ __(१) आठ कर्म और चार कर्म वेदनेवाले घणा
(२)८-४ कर्म वेदनेवाले घणे सात कर्म वेदनेवाला एक
(३) आठ-चार कर्म वेदनेवाले घणा और सात कर्म वेदनेवाले घणा एवं मनुष्यमें भी ३ भांगा समज्ञना सर्व भांगादहुआ इति।
सेवंभंते सेवंभंते तमेवसचम्