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________________ कर्मोंकि उत्तरप्रकृति. ( ३०१ ) चित्रोंका अवलोकन करता है इसी माफीक नामकर्मोदय जीवोंकों शुभाशुभ कार्य में प्रेरणा करनेवाला नामकर्म है जीसकी एकसोतीन ( १०३ ) प्रकृतियों है । ( क ) गतिनामकर्म किं च्यार प्रकृतियों है नरकगति, तीर्थचगति, मनुष्यगति. देवगति । एक गतिसे दुसरी गतिर्मे गमनागमन करना उसे गतिनाकर्म कहते है ( ख ) जातिनाम कर्म कि पांच प्रकृति है एकेन्द्रिय जाति, बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय० चोरिन्द्रिय० पंचेन्द्रिय जाति नाम । ( ग ) शरीर नामकर्मकि पांच प्रकृति है औदारिक शरार afar आहारीक तेजस० कारमण शरीर० । प्रतिदिन नाशविनाश होनेवालोंकों शरीर कहते है । ० (घ) अंगोपांग नामकर्मकि तीन प्रकृति है. औदारिक शरीर अंग उपांग, वैक्रिय शरीर अंगोपांग, आहारीक शरीर अंगोपांग, शेष तेजस कारमण शरीरके अंगोपांग नही होते है । (ङ) बन्धन नामकर्मकि पंदरा प्रकृति है - शरीरपणे पौल ग्रहन करते है फीर उनोंकों शरीरपणे बन्धन करते है यथाऔदारीक औदारीकका बन्धन, औदारीक तेजसका बन्धन, २ औदारीक कारमणका बन्धन, ३ औदारीक तेजस कारमणका बन्धन, ४ वैक्रिय वैक्रियक्ता बन्धन, ५ वैक्रिय तेजसका बन्धन, ६ कारणका बन्धन. ७ वैक्रिय तेजस कारमणका वन्धन ८ आहारीक आहारीकका बन्धन९ आहारीक तेजसका बन्धन. १० आहारीक कारमणका बन्धन. ११ आहारीक तेजस कारमणका बन्धन १२ तेजस तेजसका बन्धन. १३ तेजस कारमणका बन्धन. १४ कारमणकारमणका बन्धन १५ एवं १५ । (च) संघातन नाम कर्म कि पांच प्रकृति है जो पौद्रल शरीरपणे ग्रहन कीया है उनोंकों यथायोग्य अवयवपणे, मजबुत बनाना ।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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