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( २७०) शीघ्रबोध भाग ४ था. पन्दरा कर्मभूमिमें होते है। छदो० परि० पांच भरत पांच इर भरत एवं दश क्षेत्रों में होते है । साहारणपेक्षा परिहार० का साहा. रण नहीं होते है शेष च्यार संयम कर्ममूमि अकर्मभूमिमें भी मीलते है इतिद्वारम् ।
(१२) काल-सामा० जन्मापेक्षा अवसर्पिणि कालमें ३-४-५ आरे जन्मे और ३-४-५ आरे प्रवृते । उत्सपिणि कालमें २-३-४ आरे जन्मे ३-४ आरे प्रवृते । नोसपिणि नोउत्सपिणि चोथे पली. भाग (महाविदहे) में होवे । साहारणापेक्षा अन्यपली भाग (३० अकर्मभूमि ) में भी मोल सके । एवं छदो० परन्तु जन्म प्रवृतन तथा सर्पिणि उत्सपिणि विदेहक्षेत्रमें न हुवे, साहारणापेक्षा सब क्षेत्रोंमें मीले। परिहार० अवसपिणि कालमें ३-४ आरे जन्में प्रवृते उत्सर्पिणि कालमें २-३-४ आरे जन्मे ३-४ आरे प्रवृते । सूक्ष्म यथाख्यात अवसर्पिणिकाले ३-४ आरे जन्मे ३-४ आरे प्रवृते । उत्सर्पिणिकालमें २-३-४ आरे जन्मे ३-४ आरे प्रवृते । नो सर्पिणि नोउत्सर्पिणि चोथापली भागमें भी मीले साहारणापेक्षा अन्य पली भागमें लाधे इति द्वारम् ।
(१३) गतिद्वार यंत्रसे
संयमके नाम
गति
स्थिति
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सामा० छेदोप० सौधर्म कल्प अनुत्तर वै०/ २ पल्यो० ३३ सागरो. परिहार सौधर्मः सहस्त्र २ पल्यो १८ सागरो० सूक्षम० अनुत्तर वै० अनुत्तर व० ३१ साग० यथाख्या० अनु० अनु०३१ सा० ३३ सा.
३३ सा.