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शीवबोध भाग ४ था.
सार जादा है. चौथा सर्व कचरा निकाली हुई शाली के समान कषाय कुशील है. पांचवा शालीसे निकाला हुवा चावल इसके समान निग्रंथ है. छठा साफ किया हुवा अखंड चावल जिसमें किसी किस्मका कचरा नहीं वैसे स्नातक साधु
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द्वारम्.
( २ ) वेद - पुरुष, स्त्री, नपुंसक, अवेदी० जिसमे पुलाक.. पुरूष वेदी और पुरुष नपुंसकवेदी होते हैं, वकुश पु० स्त्री० न० वेदी होते है. वैसेही पडिसेवनमें तीनो वेद. कषायकुशील. सवेदी, और अवेदी, सवेदी होतो तीनोवेद, अवेदी होतो उपशान्त अवेदी या क्षीण अवेदी. निग्रंथ. उपशान्त अवेदी और क्षीण अवेदी होते है. और स्नातक क्षीणअवेदी होते है. द्वारम्.
(३) रागी - सरागी वीतरागा-पुलाक, बुकश, पडिसेवना कषाय कुशील एवं ४ नियंठा सरागी होते है निग्रंथ उपशान्त वीतरागी और क्षाण वीतरागी होते है. स्नातक क्षीण वीतरागी होते है द्वारम्.
( ४ ) कल्प ५ = स्थित कल्प, अस्थितकल्प, स्थिवरकल्प, जिनकल्प, कल्पातीत. -कल्प दश प्रकारके है, १ अचेल, उदेशी, ३ रायपिंड, ४ सेझात्तर, ५ मासकल्प, ६ चौमासीकल्प, ७ व्रत, ८ पडिक्कमण, ९ किर्तीकर्म, १० पुरुषाजेष्ट, यह दशकल्प पहिले और छेहले तीर्थकरोंके साधूवोंके स्थितकल्प होता है. शेष २२ तीर्थंकरोंके शासन में अस्थितकल्प है. उपर जो १० कल्प कहआये है. उसमें ६ अस्थितकल्प है १-२-३-९-६-८ और चार स्थितकल्प है. ४-७-९-१० (३) स्थिवरकल्प वस्त्रपात्रादि शास्त्रोक्त रखे. (४) जिनकल्प जघन्य २ उत्कृष्ट १२ उपगरणरक्खे (५) कल्पातित केवलज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी,