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(२४४ ) शीघ्रबोध भाग ४ था.
(३) कायगुप्तिका चार भेद. द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, . . द्रव्यसे खाजखुने नहीं. मैल उतारे नहीं. थुक थूके नहीं. आदि शरीरकी शुश्रूषा न करे, क्षेत्रसे सर्वत्र लोकमें. कालसे जावजीव तक. भावसे कायाको सावधयोगमें न प्रवर्तावे. इति तीन गुप्ति,
सेवं भंते सेवं भंते-तमेवसचम्.
थोकडा नम्बर ३३
(३६ बोलोंका संग्रह) १ ) असंयम, यह संग्रह नयका मत है। । २) बन्ध दो प्रकारका है (१) रागबन्धन (२ द्वेषबन्धन
(३) दंड ३ मनदंड, वचनदंड, कायदंड, ३ गुप्ति-मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति. ३ शल्य-मायाशल्य, नियाणाशल्य, मिथ्याशल्य. ३ गार्व-ऋद्धिगाव, रसगाव सातागावं. ३ विराधना-ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, और चारित्र विराधना.
(४) चार कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ. ४ विकथास्त्रीकथा, राजकथा, देशकथा, भक्तकथा. ४ संज्ञा-आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा. ४ ध्यान-आतेध्यान, रोद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान.
(५) पांच क्रिया-काईया, अधिगरणिया, पाउसिया, परितापणिया, पाणाईवाईया. पांच कामगुण-शब्द, रुप, गन्ध, रस, स्पर्श । ५ समिमि-इर्यासमिति, भाषासमिति. एषणासमिति, आदान भंडमत निक्षेपणासमिति, उच्चार पासवण जलखेलमेल संघयण परिष्टापनिका समिति । ५ महाव्रत--सव्वाओ