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अष्टप्रवचन.
( २३९ )
धिक किया हुवा, शंकावाला, मूल्य लाया हुवा, सचित्त पाणाकी खुन्द जो शीतल आहारमें गीर गइ है वह इति । एषणा समिति ।
( ४ ) आदान मत्त भंडोपगरणीय समिति के प्यार भेद है द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव.
द्रव्य से संयम यात्रा निर्वाहनेकों वखपात्रादि भंडोमत्तो पगरण रखा जाते है उनोंकि संख्या ।
(१) रजोहरण - जीवरक्षा निमत्त तथा जैन मुनियोंका वन्ह इनकों शास्त्रकारोने धर्मध्वज कहा है वह आठ अंगुलकि दसीयों चौवीस अंगुल कि दंडी कुल ३२ अंगुलका रजोहरण होनाचाहिये। (२) मुखवत्रिका - मक्खी मच्छरादि त्रस जीवों कि बोलत समय विराधना न हो या सूत्रादिक पर थुक से अशातना न हो. बोलते समय मुंह आगे रखनेकों एकविलस च्यार अंगुल समचोरस होना चाहिये ।
(३) चोलपट्टा-कटीबन्ध पांच हाथका होता है । (४) चदर - मुनियोंकों तीन साध्वीयोको च्यार ।
(५) कम्बली - जीवरक्षानिमत्त, गमनागमन समय शरीर आच्छादन करनेकों चतुर्मास में छेघडी, शीतकालमें प्यार घडी, उष्णकालमें दो घडी पाछला दिनसे उक्त काल दिन उगणे के बाद कम्बली रखना चाहिये ।
(६) दंडो-मुनियोंकों अपने कान प्रमाणे दंडा संयम या शरीर रक्षणनिमित्त रखना चाहिये ।
(६) पात्रे - काष्टके बेके मट्टीके आहार पाणी लाने के लिये. एक बिलसके चाडे हो तीन विलास च्यारांगुलके परधीवाले ।
(८) झोली-पात्रे बन्ध जानेके बाद गांठसे च्यारों पले च्यारांगुल ज्यादा रहना चाहिये. आहार लेनेको ।
(९) गुच्छे उनके गुच्छे पार्थोके उपर नीचे देके जीवरक्षा के लिये पात्रा बन्धनेको रख जाते है ।