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षट्व्याधिकार.
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स्पर्श करे स्यात् न भी करे कारण आढाइ द्विपके अन्दर जो धर्मास्ति है वह तो कालके प्रदेशको स्पर्श करे वह अनंत प्रदेश स्पर्श करे यहाँ उपचरित नयसे कालके अनंत प्रदेश माना है। और जो आढाइद्विपके बाहार धर्मास्ति है वह कालके प्रदेश स्पर्श नही करते है | इसी माफीक अधर्मास्तिकाय भी समझना स्वकाया पेक्षा ज० तीन प्रदेश उ० ले प्रदेशपर कायापेक्षा धर्मास्तिकाय वत्-आकाशास्तिकायका एक प्रदेश-धर्मद्रव्यका जघ न्य १-२-३ प्रदेश स्पर्श करे उ० सात प्रदेश स्पर्श करे - कारण आकाशास्ति अलोक में भी हैं वास्ते लोकके चरमान्तमें एक प्रदेश भी स्पर्श कर सकते हैं। शेष धर्मास्ति कायवत् जीवका एक प्रदेशधर्मास्तिकायका ज० च्यार उ० सात प्रदेशोंका स्पर्श करते है शेष धर्मास्तिवत् । पुद्गलास्तिकायका एक प्रदेश-धर्मास्तिकायके ज० च्यार उ० सात प्रदेश स्पर्श करते हैं शेष धर्मास्तिकायवत् । कालका एक समय धर्मास्तिकायकों स्यात् स्पर्श करे स्यात् न भी करे जहांपर करते है वहां ज० च्यार उ० सात प्रदेश स्पर्श करे. शेष धर्मास्तिकायवत्। पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेशधर्मास्तिकाय के दुगुणोंसे दो अधिक याने छेप्रदेश उत्कृष्ट पांच गुणोंसे दो अधिक याने बारहा प्रदेश स्पर्श करे एवं तीन च्यार पांच छे सात आठ नौ दश संख्याते असंख्याते अनंते. सब जगह नघन्य दुगुणोंसे दो अधिक उ० पांचगुणोंसे दो अधिक.
(३१) अल्पबहुत्वद्वार-द्रव्यापेक्षा सर्व स्तोक धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य आकाशद्रव्य तीनों आपस में तुला है कारण तीनोंका एकेक द्रव्य है उनसे जीवद्रव्य अनंत गुणे है उनसे पुद्गलद्रव्य अनंत गुणे है कारण एकेक जीवके अनंते अनंते पुद्गलद्रव्य लगे हुवे है। उनसे काल द्रव्य अनंत गुणे है इति । प्रदेशापेक्षा, सर्व'स्तोक धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य के प्रदेश है कारण दोनों के प्रदेश असंख्याते २ हैं ( २ ) उनोंसे जीव प्रदेश अनंतगुणे है ! ३) उनोंसे