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षद्रव्यांधिकार. ( १८९) हे भव्यजीवों यह अपना जीव अनंतीवार उन सूक्षम बादर मिगोदमें तथा नरकम दुःखों का अनुभव कर आया है इस समय मनुष्यादि अच्छी सामग्री मीली है वास्ते यह परम पवित्र पुरुषोंका फरमाया हुवा स्यावादनय निक्षेप द्रव्यगुण पर्यायादि अध्यात्म ज्ञान का अभ्यास कर अपनि आत्मामें रमणता करों तांके फीर उन दुःखमय स्थानों को देखने का अवसर ही न मीले । सज्जनों ! आधूनिक लोगों को आलस्य प्रमाद बहुत बढजानेसे बडे बडे ग्रन्थों को अलमारी में रख छोडते है इस वास्ते यह संक्षिप्त में सार लिख सूचना करते है कि इस संबन्ध को आप कंठस्थ कर फीर रमणता करे तांके आपकि आत्मा को बढी भारी शान्ति मिलेगी । इति ।
संवंभंते सेवभते-तमेव सचम् ।
-kok--- थोकडा नम्बर. २२
(षद् द्रव्यके द्वार ३१) मामद्वार, आदिद्वार, संस्थानद्वार, द्रव्यद्वार, क्षेत्रद्वार, कालद्वार, भावद्वार, सामान्यविशेषद्वार, निश्चयद्वार, नयद्वार, निक्षेपवार, गुणद्वार, पर्यायद्वार, साधारणद्वार, स्वामिद्वार, परिणामिकद्वार, जीवद्वार, मूर्तिद्वार, प्रदेशद्वार, एकडार, क्षेत्र द्वार, क्रियाद्वार, कर्ताद्वार, नित्यद्वार, कारणद्वार, गतिद्वार, प्रवेशद्वार, पृच्छाहार, स्पर्शनाद्वार, प्रदेशस्पर्शनाद्वार, अल्पाबहुत्वद्वार।