________________
उपन्नेवाधिकार.
( १८१) जो पहले समय भाव देखा था बह उत्पात है. उनी समय जिस पर्यायका नाश हो दुसरी पर्यायपणे उत्पन्न हुवा वह व्यय ही उनी समय है और सिद्धोंका ज्ञान है वह धूव है. जेसे किसीको बाजुबन्ध तोडाके चुडी करानी है तो चुडीका उत्पात बाजुका नाश और सुवर्णका धूवपणा है । जेसे धर्मास्तिकायमें जो पहले समय पर्याय थी वह नाश हुइ, उनी समय नये पर्याय उत्पन्न हुवा और चलनादि गुण प्रदेशमें है वह ध्रुवपणे रहे इसी माफीक सधै द्रव्यके अन्दर समझ लेना।
(१४ ) अध्येय और आधार-अध्येय जगतके घटपटादि पदार्थ आधार पृथ्वी अध्येय जीव और पुद्गल आधार आकाश, अध्येय ज्ञानदर्शन आधार जीव इत्यादि सर्व पदार्थमे समझना।
। १५ ) आविर्भाव-तिरोभाव-तिरोभाव जो पदार्थ दूर है. आविर्भाव आकर्षित कर नजीक लाना. जेसे घृतकी सत्ता घासके तृणोंमें होती है. यह तिरोभाव है और गायके स्तनोंमें दुध है यह आविर्भाव है। गायके स्तनों में घृत दूर है और दुधमें नजदीक है, दुध घृत दूर है और दही में नजदीक है. दहीमें घृत दूर है और मक्खनमें नजदीक है. इसी माफीक सयोगीको मोक्ष दूर है अयोगीको मोक्ष नजदीक है. वीतरागको मोक्ष नजदीक है, छद्मस्थको दूर है, क्षपकश्रेणिको मोक्ष नजदीक है, उपशमश्रेणिको मोक्ष दूर है. इसी माफीक सकषाइ, अकषाइ, प्रमत्त, अप्रमत्त, संयति-असंयति, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि यावत् भव्य-अभव्य ।
(१६ ) गौणता-मौख्यता-जो पदार्थ के अन्दर गुप्तपणे रहा हुवा रहस्यकों गोणता कहते है. जिस समय जिस वस्तु के व्याख्यानकी आवश्यक्ता है, शेष विषयकों छोड उन्ही आवश्यक्ता. वाली वस्तुका व्याख्यान करना उसे मौख्यता कहते है. जेसे