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( १७०) शीघबोध भाग ३ जो.
मठा-शरीरको तेलादिकसे मालिसपीटी करे. तुपुठा-नागरबेली के पानोंसे होठे को लाल बना रखे. पंटूर पट्ट पाउरणा-उज्वल सुपेद वस्त्री चोलपट्टा पहने। जिणाणमणाणाए-जिनाज्ञाके भंगकों करनेवाले। सच्छंद विहारीउण-अपने छंदे माफीक चलनेवाला ।
उभओकालं आवस्सयस्स उवदंति “ अण उपओगदव्य" दोनोंबख्त आवश्यक करने पर भी “ उपयोग" न होनेसे द्रव्य. आवश्यक कहते है इति.
कुप्रषचन द्रव्यावश्यक जेसे चकचीरीया चर्मखंडा दंडधारी फलाहारी तापसादि प्रात: समय स्नान भजन कर देव सभामें इन्द्रभुवनमें अर्थात् अपने अपने माने हुवे देवस्थानमें जाके उपयोग शून्य क्रिया करे उसे कुप्रवचन द्रव्यावश्यक कहते है । इति द्रव्यनिक्षेपा।
(४) भावनिक्षेपा-जीस वस्तुका प्रतिपादन कर रहे हो उनी वस्तुमें अपना संपुरण गुण प्रगट हो गया हो उसे भाव निक्षेप कहते है जेसे अरिहन्तोका भाव निक्षेपा केवलज्ञान दर्शन संयुक्त समवसरणमे विराजमानकों भाव निक्षेप कहते है उन भावनिक्षेप के दो भेद है (१) आगमसे (२) नो आगमसे । जिस्मे आगमसे आगमोंका अर्थ उपयोग संयक्त "उवओगो भावो" दुसरानो आगम भावावश्यक के तीन भेद है (१) लौकीक भावाश्यक (२) लोकोत्तर भावावश्यक ( ३ ) कुप्रषचन भावावश्यक ।
लौकीक भाषावश्यक जेसे राज राजेश्वर युगराजा तलवर माडम्बी कौटुम्बी सेठ सैनापति आदि प्रातः समय स्नान मजन तीलक छापा कर अपने अपने माने हुवे देवोंकों भाव सहित