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शीघ्रबोध भाग २ जो. - (१२) अवनित अभिग्रह-दातार अवगुण बोलके आहार.
देवे तो लेना. (१३) उवनित अवनित-पहले गुण ओर पीच्छे अवगुण
करते हुवे आहार देवे तो लेना.. (१४) अव० उप० पहले अवगुण और पीछे गुण करता देवे. (१५) संसठ्ठ ,, पहलेसे हाथ खरडे हुवे हो वह देवे तो लेना ( १६ ) असंसट्ट,, पहलेसे हाथ साफ हो वह देवे तो लेना. (१७ ) तजत ,, जोस द्रव्यसे हाथ खरडे हो वहही द्रव्य लेवे. (१८) अणवण ,, अज्ञात कुलकि गौचरी करे। (१९) मोण ,, मौनव्रत धारण कर गौचरी करे। (२०) दिट्ठाभिग्रह, अपने नेत्रोंसे देखा हुवा आहार ले. ( २१ ) अदिठ्ठ ,, भाजनमें पडा हुवा अदेखा हुआ" लेवे. ( २२ ) पुठ्ठाभिग्रह पुच्छके देवे क्या मुनि आहार लोगे
तो लेना. (२३) अपुट्ठाभिग्रह-विनों पुच्छे दे तो आहार लेना. ( २४ ) भिक्ख ,, आदर रहीत तिरस्कारसे देवे तो लेना. ( २५ ) अभिक्ख ,, आदार सत्कार कर देवे तो लेना. ( २६ ) अणगीलाये ,, बहुत क्षुधा लगजाने पर आहार लेवे. ( २७) ओवणिया ,, नजीक नजीक घरोंकी गोचरी करे, ( २८) परिमत्त ,, आहारके अनुमानसे कम आहार ले. ( २९ ) शुद्धेसना ,, एकही जातका निर्वध आहार ले. (३०) संखीदात ,, दातादिकी संख्याका मान करे.