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(१००) शीघ्रबोध भाग २ जो. मोलाके १०१ भेद इनोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता करनेसे २०२ एकसो.. एक मनुष्योंके चौदा स्थानमे समुत्सम जीव उत्पन्न होते है यह अपर्याप्ता होनेसे १०१ मोलाकेसर्व ३०३ देवतोंके दशभुवनपति १५ परमाधामी १६ बाणमित्र १० जम्मृक दश जोतीषी बारहा देवलोक तीन कल्विषी नौ लोकान्तिक नौ ग्रीवंग पांच अनुतर पैमान एवं ९९ इनोंके पर्याप्ता अपर्याप्ता मीलाके १९८ भेद हुये १४-४८-३०३-१९८ एवं जीव तरबके ५६३ भेद होते है इनके .. सिवाय अगर अलग अलग किया जावे तो अनंते जोवोंके अनंते भेदभी हो सकते है। इति जीव तत्व।
(२) अजीवतस्वके जडलक्षण-चैतन्यता रहित पुन्यपापका अकर्ता सुख दुःखके अभक्ता पर्याय प्राण गुणस्थान रहित द्रव्यसे अजीव शाश्वता है भूत कालमें अजीव था वर्तमान कालमें अजीव है भविष्य में अजीव रहेगा तीनों कालमें अजीयका जीव होवे नही. द्रव्यसे अजीवद्रव्य अनंते है क्षेत्रसे अजीवद्रव्य लोकालाक व्यापक है कालसे अजीवद्रव्य अनादि अनंत है भावसे अगुरु लघुपर्याय संयुक्त है. नाम निक्षेपासे अजीव नाम है स्थापना निक्षेपा अजीव एसे अक्षर तथा अजीवकि स्थापना करना. द्रव्य से अजीव अपना गुणोको काममें नही ले. भावसे अजीव अपना गुणोको अन्य के काम में आवे जेसे कीसीके पास एक लकडी है जबतक उन मनुष्यके वह लकडी काममें न आती हो तबतक उन मनुष्य कि अपेक्षा वह लकडी द्रव्य है और वह ही लकडीं उन मनुष्यके काममें आति है तब यह लकडी भाष गीनी जाती है.
अजीवतत्वके दो भेद है (१) रूपी ( २ ) अरूपी जिस्मे अरूपी अजीवके ३० भेद है यथा-धर्मास्तिकायके तीन भेद है.' धर्मास्तिकाय के स्कन्ध, देश, प्रदेश. अधर्मास्तिकायके स्कन्ध,