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नवतत्त्व.
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स्पर्श कर संयुक्त है एक पर्याप्ताकि नेश्राय असंख्याते अपर्याप्ता उत्पन्न होते है एक तुणगीयामें असंख्य जीव है सातलक्ष योनि है एक महुर्तमें उत्कृष्ट १२८२४ भव करते है।
बादर वायुकाय के अनेक भेद है । पूर्ववायु पश्चिमवायु दक्षिणवायु उत्तरायु उर्ववायु अधोवायु विदिशीवायु उत्कलिक वायु मंडलीयावायु मंदवायु उदंडवायु द्विपवायु समुद्रवायु इत्यादि जिनोंका दो भेद है पर्याप्ता अपर्याप्ता जो अपर्याप्ता है यह असमर्थ है जो पर्याप्ता है वह वर्णगन्धरस स्पर्श कर संयुक्त पर्याप्ताकि निश्राय निश्चय असंख्याते अपर्याप्ता जीव उत्पन्न होते है एक झबुकडे में असंख्य जीव होते है वह एक महुर्तमें उत्कृष्टभव करे तो १२८२४ भव करते है । सात लक्ष जाति है।
बादर वनस्पतिकायके दो भेद है (१) प्रत्येक शरीरी (२) साधारण शरीरी जिस्मे प्रत्येक शरीरी (जिस शरीरमें एकही जीव हो ) के बारहा भेद है वृक्ष, गुच्छा, गुम्मा, लता, वेल्ली, इक्षु, तृण, बलय, हरिय, औषधि, जलरुख, कुहणा-जिस्मे वृक्षके दो भेद है। .
(१) जिस वृक्षके फलमें एक गुठली हों उसे एग्गठीये कहते है और जिस वृक्षके फलमें बहुतसे गुठलीयो (बीज) होते हो उसे बहुवीजा कहते है। जेसे एक गुटलीवालोंके नामयथा-निबंब जांबुवृक्ष कोशंबवृक्ष शालवृक्ष आम्रवृक्ष निंबवृक्ष नलयेरवृक्ष केवलवृक्ष पैतुवृक्ष शेतुवृक्ष इत्यादि और भी जिस वृक्षके फलमें एक बोज हो वह सब इसके अन्दर समजना. जिस्के मूलमें असंख्य जीव कन्दमें स्कन्ध साखामे, परवालमें असंख्य जीव है पत्रों में 'प्रत्येक जीव है पृष्पों में अनेक जीव और फलमें एक जीव होते है।
बहु बीन वृक्षके नाम-तंदुकवृक्ष आस्तिकावृक्ष कविटवृक्ष