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छे आरा.
(७३) इत्यादि अनेक बालोसे यह पांचवा आरा कलंकित होगे। इन आरामें रत्न सूवर्ण चांन्दी आदि धातु दिन प्रतिदिन कम होती जावेगी. अन्तमें जीस्के घर में मणभर लोहा मीलेंगे वह धनाढ्य कहलायेंगे इन आरामें चमडे के कागजोंके चलन होगें इन आरामें महनन बहुत मंद होगें अगर शुद्ध भावोंसे एक उपासभी करेंगे वह पुषकि अपेक्षा मासखमण जेसा तपस्वी कहलावेगे, उन समय श्रुतज्ञानकि क्रमशः हानि होगी अन्तम श्री दशवकालीक सू.
के च्यार अध्ययन रहेंगे उनसे ही भव्य जीव आराधि होंगे पांच आरेके अन्त में संघमें च्यार जीव मुख्य रहेंगें (१) दुप्पसासूरी साधु ( २) फाल्गुनी साध्वी (३) नागल श्रावक ( ४ ) नागला श्राविका यह च्यार उत्तम पुरुष सद्गतिगामी होगे।
पांचवे आरेके अन्तमें आमाढ पुर्णीमाको प्रथम देवलोकमें शक्रन्द्रका मासन कम्पायमान होगें. जब इन्द्र उपयोग लगाके जानेंगें कि भरतक्षेत्रमें कल छठा आरा लगेगा. तब इन्द्र मृत्युलोगमें आधेगें और कहेगेंकि हे भव्यों! आज पांचवा आरा है कल छठा आरा लगेंगे. वास्ते अगर तमकों आत्मकल्याण करना हो मों आलोचन प्रतिक्रमण कर अनसन करों इत्यादि इनपरसे यह ही च्यारों उत्तम पुरुष आलोचना प्रतिक्रमण कर अनसनकर देवगतिमें जायेंगें शेष जीव बाल मरणसे मृत्युपाके परभव गमन करेंगे ! पाठको वहही पांचमकाल अपने उपर घरत रहा है वास्ते मावचेत रहना उचित है।
पांचवे आरेके अन्तमें मनुष्योंका उत्कृष्ट बीस वर्षका आयुष्य एक हाथका शरीर चरम संहनन संस्थान रहेगा भूमिका . रस दग्धभूमि जेसा रहेगा वर्ण गन्ध रस स्पर्शादि सब अनंत भाग न्युन होंगें पांचवा आरा उत्तरके छठा आरा लगेगा उनका वर्णन बडा ही भयंकर है।