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से हानि होने लगी इसी माफीक कल्पवृक्ष भी निरस होने लगें. फल देने में भी संकुचितपना होनेसे युगल मनुष्योंके चित्तमें चंचलता व्याप्त होने लगी इस समय रागद्वेषने भी अपना पगपसारा करना सरु कर दीया इन कारणों से युगल मनुष्यो में अधिपति की आवश्यक्ता होने लगी. तब कुलकरों कि स्थापन हुई पहले के पांचकुलकरा के 'हकार' नामका नीति दंड हुवा अगर कोई भी युगल अनुचित कार्य करे तो उसे वह कुलकर दंड देता है कि ' है ' बस इतनेमें वह मनुष्य लज्जीत होंके फीर -जन्म भरमें कोइभी अनुचित कार्य नही करता. इस नितीसे केह काल व्यतित हुवा. जब उन रागद्वेष का जोर बढने लगा तब दुसरे पांच कुलकरोंने 'मकार' नामका दंड नीकाला, अगर कोई युगल मनुष्य अनुचित कार्य करें तो वह अधिपति कहते कि 'म' याने यह कार्य मत्त करों इतने में वह मनुष्य लज्जीत हो जाता था बाद रागद्वेषका भाइ क्लेशने भी अपना राज जमाना सरूकीया जब तीसरे पांच कुलकरोंने 'धीक्कार' नामका दंड देना सरू कीया. इन पंद्रह कुलकरोंद्वारा तीन प्रकार के दंड से नीति चलती रही जब तीसरे आराके ८४ चोरासी लक्ष पूर्व और तीन वर्ष साढे आठ मास शेष बाकी रहा उन समय सर्वार्थ सिद्ध महा वैमान से चवके भगवान ऋषभदेवने, नाभीराजा के मरूदेवी भार्या कि रत्नकुक्षीमें अवतार लीया माताको वृषभादि चौदा सुपना आये उनका अर्थ खुद नाभीराजने ही कहा क्रमशः भगवानका जन्म हुवा चौसठ इन्द्रोंने महोत्सव कीया. युवक वय में सुनन्दा सुमंगला के साथ भगवानका व्याह (लग्न कीया जीसके रीत रस्म सब इन्द्र इन्द्राणीयों ने करीथी फीर भगवान् ऋषभदेवने पुरुषोंकी ७२ कला ओर स्त्रियोंकी ६४ कला बतलाइ