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________________ संगीतरत्नाकरः निकुट्टनान्मियोऽधिभ्यामुद्धताभ्यां पुराटिका / इति पुराटिका (28) उत्तेन निकुट्टेन चरणेन निकुट्टनम् // 996 // उत्तस्यान्यपादस्य यत्र सार्धपुराटिका / ___ इत्यर्धपुराटिका (29) घरणोऽग्रे सरत्येको यत्र सा सरिका मता // 997 / / इति सरिका (30) पुरःसरणमधिभ्यां समाभ्यां स्फुरिका भवेत् / इति स्फुरिका (31) (सु०) पुराटिकां लक्षयति-निकुट्टनादिति / यत्र उदृत्तौ पादौ मिथो निकुटयेते ; सा पुराटिका // 995- // इति पुराटिका (28) (सु०) अर्धपुराटिकां लक्षयति-उवृत्तेनेति / यत्र उवृत्तेन निकुठून चरणेन, उद्वृत्तस्य अन्यचरणस्य निकुट्टनं क्रियते; सा अर्धपुराटिका // 996, 996- // इत्यर्धपुराटिका (29) (सु०) सरिकां लक्षयति-चरण इति / यत्र एकः पादः अग्रे सरति ; सा सरिका || -997 // इति सरिका (30) (मु०) स्फुरिकां लक्षयति-पुर इति / यत्र समाभ्यां चरणाभ्यां पुरतो सरणं क्रियते ; सा स्फुरिका // 997- // इति स्फरिका (11) Scanned by Gitarth Ganga Research Institute
SR No.034230
Book TitleSangit Ratnakar Part 04 Kalanidhi Sudhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarangdev, Kalinatha, Simhabhupala
PublisherAdyar Library
Publication Year1953
Total Pages642
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size277 MB
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