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द्वितीयो रागविवेकाध्यायः ३. सा गा मा पा धा पा मप मग
अ म र व धू कु च सा गा मा पा पा पा पा पा
प रि म लि तं ५. धा पा सा मा पा पा धा धा
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धा पा पम मपग सां गां मां पां
वि ज य ते गं गा ८. धा पा मग मा मा मा मा मा वि म ल ज लं -इत्याक्षिप्तिका। इति भिन्नतानः ।।
भिन्नकैशिकः कैशिकीकार्मारवीभ्यामुद्भूतो भिन्नकैशिकः ।। ३७ ॥ षड्जग्रहांशापन्यासः संपूर्णः काकलीयुतः। मन्द्रभूरिः ससंचारी प्रसन्नादिविभूषणः ।। ३८ ॥ षड्जादिमूर्छनो दानवीरे रौद्रेऽद्भुते रसे । गेयोऽह्नः प्रथमे यामे शिशिरे शिववल्लभः ॥ ३९ ॥
(सं०) भिन्नकैशिकं लक्षयति-कैशिकीति । मन्द्रा भूरयो बहुला यस्मिन् स मन्द्रभूरिः । संचारिणा वर्णन सह वर्तमानः ससंचारी ॥ ३७-३९ ॥
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