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द्वितीयो रागविवेकाध्यायः प्रसन्नाद्यवरोहिभ्यां संयतानां तपस्विनाम् । गृहिणां च प्रवेशादौ रसे शान्ते शिवप्रियः ॥१२१॥ प्रयोज्यः पश्चिमे यामे वीरे रौद्रेऽद्भुते रसे ।
सां सपा पधानी धापा पधा सा सपाप धा सा सपापधा ध गारि मा गा रि सनि स पा धा सनि सां। मां मां मगारी रि मा म पा प ध निधा पापधा सांस पापधा धगा रि मा गा री सनिधा धपा सा सनी सां सां। मम समम(षड्ज)ससं सांग संग गरी ग सा सं सं स ध ध नि निध सनि धनि धा ध प । पपपधध ध स नि सां सां सं सं सं सम(षड्ज)ससं ससं ग सस मरि रिग सस गध धनि ध ध ग सं सं सं धनि ध सनि धनि धध (पश्चम)पापप रि पपनि ध ध स सा सस धम रि रि धम रिरि धस सप । धध नि ग धध सस धध नि ध स नि धनि धधपा । पापपप(गान्धार)गा गग मरि स ग सनिध सस । पपधध सनिसा। स सं स प पप नि नि नि (षड्ज) स स स रि रि रिरि परि पा धध स निसा। सध म रि रि धम मा रि रि ग सस ग धध नि धध गस सस धध निध सनि धनि ध धप धध रि नि धधध गरि मग रिस निध स निध निध पपंध रि निध सध गरि मगरि मगरि सनि ध समापपधध सनिसा-इत्यालापः।
(सं०) सौवीरं लक्षयति-षड्जमभ्यमयेति । अल्पगान्धारः। संयतानां नियमवताम् ॥ १२०-१२२ ॥
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