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________________ - न्यायषिन्दु ... न अमूर्त है। . साध्यसाधनधर्षोभयविकलास्तथा सन्दिग्धसाध्यधर्मादयश्च । साध्यधर्मविकल साधनधर्मविकल, उभयविकल, तथा सन्दि. ग्धसाध्यधर्म आदि ( सन्दिग्धसाधनधर्म तथा सन्दिग्धोभय ) [दृष्टान्त दोष हैं । (इनमें से कर्म साध्यविकल, परमाणु साधनविकल और घट उभयविफल दृष्टान्त हैं।) यथा रागादिमानयं वचनाद्रध्यापुरुषवत् । जैसे-यह राग आदि से युक्त है, क्योंकि मार्गमें चलनेवाले पुरुषके समान बोलता है ( यह संदिग्धसाध्यधर्म का उदाहरण है।) मरणधर्मोऽयं पुरुषो रागादिमत्वाद्रथ्यापुरुषवत् । यह पुरुष मरणधर्मवाला है, क्योंकि यह मार्ग में चलने वालों के समान रागादिमान है । ( यह संदिग्धसाधनधर्म दृष्टान्त है। ). असर्वज्ञोऽयं रागादिमत्वाद्रथ्यापुरुषवदिति । यह असर्वज्ञ है क्योंकि यह रथ्यापुरुष (मार्ग में चलने वाले पुरुष ) के समान रागादिमान है। ( यह सन्दिग्धोभय दृष्टान्त है। अनन्त्रयोऽप्रदर्शितान्वयश्च । - अनन्वय और अप्रदर्शितान्वय भी [ दृष्टान्त दोष हैं। ] (जिस दृष्टान्तमें साध्य और साधनमें सम्भवता ही दिखलाई दे किन्तु साध्यसे व्याप्त न हो वह अनन्वय है। जिस दृष्टान्त में . अन्वय के होते हुए भी उसे कहने वाले ने दिखलाया न हो उसे अप्रदर्शितान्वय कहते है।) यथा यो वक्ता स रागादिमानिष्टपुरुषवत् । जैसे-जो वक्ता होता है वह इष्ट पुरुष के समान रागादिमान होता है। ( यह अनन्वय का उदाहरण है।) • अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद्धटवदिति । शब्द अनित्य है। क्योंकि वह घटके समान कृतक होता है । (यह अप्रदर्शितान्वय का उदाहरण है।) तथा विपरीतान्त्रयः। तथा विपरीतान्वय यदनित्यं तत्कृतकम् । . जो अनित्य होता है यह कृतक होता है।
SR No.034224
Book TitleNyayabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmottaracharya
PublisherChaukhambha Sanskrit Granthmala
Publication Year1924
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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