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न्यायविन्दु तीनों रूपोंमेंसे एकके भी न कहनेसे साधनाभास या हेत्वाभास हो जाता है। [अथना तीनों रूपोंके] कहे जानेपर भी हेतुके असिद्ध होने या उसमें संदेह होनेसे ही हेत्वाभास हो जाता है।
प्रतिपाद्यप्रतिपादकयोरेकस्य रूपस्य धर्मिसम्बन्धस्यासिद्धौ संदेहे चासिद्धो हेत्वाभासः।
प्रतिपाद्य और प्रतिपादकमेंसे धर्मीसम्बन्धी एकरूप ( पक्षधमत्व ) के सिद्ध न होनेपर अथवा उसमें संदेह होनेपर असिद्धहेत्वाभास होतो है। .
यथा अनित्यः शब्द इति साध्ये चाक्षुषत्तमुभयासिद्धम् ।
जैसे-'शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष (चक्षुका विषय) है' में चाक्षुषत्व हेतु उभयासिद्ध है। (जो वादी और प्रतिवादी दोनों के लिये असिद्ध हो उसे उभयासिद्ध कहते हैं)।
चेतनास्तरव इति साध्ये सर्वत्वगपहरणे मरणं प्रतिवाद्यः सिद्धं विज्ञानेन्द्रियायुर्निरोधलक्षणस्य मरणस्यानेनाभ्युपगमात्तस्य च तरुष्वसम्भवात् । ___'वृक्ष सजीव होते हैं, क्योंकि वह सब छालके उतर जाने पर मर जाते हैं ( सूख जाते हैं )। इसमें वृक्षका सब छालके उतर जाने पर मरजाना प्रतिवादी ( बौद्ध) को असिद्ध है। [ अतः यह प्रतिवाद्यसिद्ध हेत्वाभास है। ] क्योंकि बौद्धदर्शन विज्ञान, इन्द्रिय और आयुके निरोध होनेको ही मरण मानता है, जिसका होना वृक्षोंमें असम्भव है। ____ अचेतनाः सुखादय इति साध्य उत्पत्तिमत्त्वमनित्यं वा सांख्यस्य स्वयं वादिनोऽसिद्धम् ।
'सुख आदि अचेतन हैं, क्योंकि वह उत्पत्तिमान् अथवा अनित्य हैं। इसमें उत्पत्तिमत्व अथवा अनित्यत्व स्वयं वादी अर्थात् सांख्यको ही असिद्ध है। [ अतः यह हेतु वाद्यसिद्ध है।] .
तथा स्वयं तदाश्रयणस्य वा संदेहेऽसिद्धः । तथा स्वयं उस साध्यधर्मीके संदिग्ध होनेसे हेतु संदिग्धासिद्ध भी है। [ अपने आप संदेह किये हुएका उदाहरण-]