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________________ हस्त प्रकरण के भाव प्रदर्शन में इस हाथ को ललाट पर रखना चाहिए । परित्राण देने के अर्थ में उसका मुँह मुड़ा हुआ होना चाहिए; और अनुवाद का भाव प्रदर्शित करने में उसे कानों के समीप रखना चाहिए । शिरोवेष्टित एष स वैद्ये स्याद् भूपालाभिनये करः । त्वेकहस्तस्थनाडिका देशसंश्रितः ॥११०॥ 114 राजा के अभिनय में त्रिपताक हस्त को शिर पर घुमा कर रखना चाहिए और वैद्य के अभिनय में उसे एक हाथ की नाड़ी पर रखना चाहिए । योज्यो मुखप्रदेशमा गच्छन्नसौ चलदङ्गुलिरुत्तानोऽभिव्यक्तेऽथ जनान्तिके । विसर्जने ॥ १११ ॥ 115 अभिनय के समय (रंगमंच ) पर अभिनेता द्वारा दूसरे के सामने कुछ करने का भाव प्रदर्शित करने में त्रिपताक हस्त को मुख के पास 'जाना चाहिए। किसी बात को प्रकट करने और विसर्जन के आशय में उसे, उँगलियों को कम्पित करते हुए, उत्तानावस्था में रखना चाहिए । पुरोगतस्तिरस्कारेऽतिक्रमे परिवर्तितः । त्रिपताकं यदा वामनुगच्छेत्परः करः ॥ ११२ ॥ तदानुवृत्ते योज्योऽयं पत्यौ तु शिरशि स्थितः । अयमन्तःपुरे तु स्यात्स्वास्तिकाकृतितां गतः ॥११३॥ 116 117 तिरस्कार का भाव प्रदर्शित करने में उसे सामने रखना चाहिए और उल्लंघन के आशय में उसे उलट कर रखना चाहिए। एक के पीछे दूसरे को चलने अथवा अनुकरण करने के अभिनय में दाहिने त्रिपताक हस्त को आगे और बाँये त्रिपताक हस्त को उसका अनुसरण करते हुए दिखाना चाहिए। पति का भाव दिखाना हो तो उसे शिर पर रखना चाहिए और अन्तःपुर के अभिनय में उसे स्वस्तिकाकार बनाना चाहिए । मुखदेशे तु पार्श्वस्थो विविक्ते गदितो बुधैः । कुञ्चिताधस्तलीभूय नेये स स्यात्प्रसारितः ॥११४॥ 118 विद्वानों का कहना है कि एकान्त के अभिनय में त्रिपताक हस्त को मुख के एक बगल में रखना चाहिए और ले जाने के भाव-प्रदर्शन में उसे निम्न भाग से मोड़ कर फैला देना चाहिए । .७९
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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