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________________ हस्त प्रकरण गिरने के भाव में उसे नीचे गिराते हुए प्रदर्शित करना चाहिए और दंष्ट्रा (दाढ़ या हाथी के दांत) के अभिनय में दोनों सूचीमुख हस्तों को बगल में थोड़ा झुकाकर ओठों के निकट अवस्थित कर देना चाहिए। संयोगे त्वस्य तर्जन्यौ कर्तव्ये पार्श्वसंयुते । अधस्तले वियोगे तु विधातव्ये वियोजिते ॥८॥ यदि संयोग का भाव दिखाना हो तो दोनों सूचीमुख हस्तों की तर्जनियों को पार्श्व भाग से मिला देना चाहिए और यदि वियोग का भाव प्रदर्शित करना हो तो उनको अधः भाग से वियुक्त कर देना चाहिए। कलहे स्वस्तिकाकारे नियोज्ये ते विचक्षणः। 92 धूमे सा मण्डलाकारभ्रान्ताथात्यन्तचञ्चला ॥६॥ विद्वानों का मत है कि कलह का भाव दर्शित करने में दोनों सूचीमुख हस्तों को स्वस्तिकाकार मुद्रा में प्रयुक्त करना चाहिए । धुएं का भाव दिखाने के लिए सूचीमुख हस्त को मण्डलाकार में तीव्रगति से कम्पित कर देना चाहिए। बालसर्प भवे(? द्)देव्याक्र थे(?व्याः केशे)वक्रप्रसारिता । 93 कम्पमानाथ कर्तव्या निर्देशे तु रिपोरियम् ॥१०॥ बाल सर्प और देवी के केशों का भाव प्रदर्शित करने में सूचीमुख हस्त को टेढ़ा करके प्रसारित कर देना चाहिए। शत्र का निर्देश करने के आशय में उसे कम्पित कर देना चाहिए। पार्वोत्ताना. कुन्तले तु कुण्डलाङ्गदयोस्तथा । 94 • तत्तदेशगता कार्या कूपावर्ते त्वधोमुखी ॥६॥ शिर के बाल, कुण्डल तथा केयूर (भुजबन्द) आदि के भावाभिव्यंजन में सूचीमुख हस्त को पार्श्व भाग से ऊर्ध्वमुख करके उन-उन स्थानों पर रखना चाहिए। कुएँ के भँवर के आशय में उसे अधोमुख कर देना चाहिए। ... ऊर्ध्वलोके तु सर्वेषामादिमेऽपि च सोर्ध्वगा। . 95 जृम्भायां तु मुखाभ्यासे नियोज्या सा मनीषिभिः ॥२॥ मनीषी जनों का कहना है कि ऊर्ध्वलोक, सर्वप्रथम, जंभाई और मुखाभ्यास का भाव दिखाने के लिए उसे ऊर्ध्वमुख करना चाहिए।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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