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________________ कुशाङ्कुशग्रहे अलकोत्क्षेपणेऽप्येषोऽलक्तकोत्पीडने मोक्षणे तोमरस्यासौ शक्तेरपि सतां हस्त प्रकरण चापवज्रयोर्ग्रहणेऽपि नीव्यादिरचने नाभिदेशस्थितो तथा । मतः ॥ ५४ ॥ कुश, अंकुश, धनुष और वज्र धारण करने, बाल झाड़ने या सँवारने, महावर लगाने, तोमर ( भाले की तरह का अस्त्र विशेष ), तथा शक्ति ( साँग ) नामक अस्त्रों को चलाने का भाव प्रदर्शित करने में शिखर हस्त का विनियोग होता है । वादने स्वपाव अधरस्य त्वेष चञ्चलाङ्गुष्ठका नीविधारणेऽधोमुखः च ॥५३॥ कोहलादीनां दोलितोऽथासौ मनाक् । स्थितः ॥ ५५ ॥ नीवी (धोती की गाँठ या इजारबन्द ) आदि बाँधने के अभिनय में शिखर हस्त का अंगूठा कुछ कम्पित कर देना चाहिए । किन्तु नीवी धारण करने के अभिनय में उसे अधोमुख करके नाभि के पास रखना चाहिए । घण्टादीनां तु वादने । रञ्जनेऽलक्तकादिना ॥५६॥ स्यात् पश्चादेकोऽपरः पुरः ॥५७॥ पतनोत्पतनान्वितः । तद्देशेऽधोमुखः परिकीर्तितः ॥ ५८ ॥ सीधुपाने मुखस्थ: स्यान्नियोगे शिरो देशगतौ कार्यों शिखरौ 56 57 प्रकर्तव्यस्तद्देशस्थोऽभिनेतृभिः । 59 कोहल (एक प्रकार का वाद्य यंत्र) और घंटा आदि बाजों को बजाने के अभिनय में शिखर हस्त को बगल में करके कम्पित कर देना चाहिए । अधर को महावर आदि से रँगने के भावाभिव्यंजन में अभिनेताओं को चाहिए कि वे शिखर हस्त को अधर के पास अवस्थित करें । . वंशादिजलयन्त्रे यवादितांडने असौ शिरसि तावधोमुखौ । नृत्यपण्डितैः ॥ ५६ ॥ 58 बाँस आदि के बने जलयंत्र के भाव प्रदर्शन में एक शिखर हस्त को पीछे और दूसरे को आगे रखना चाहिए । यव (जी) आदि धानों के कूटने-पीटने में प्रयुक्त डण्डे के भाव दर्शन में शिखर हस्त को उठाते- गिराते हुए (अथवा ) शिर पर अधोमुख करके रखना चाहिए । 60 61 ६९
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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