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________________ हस्त प्रकरण दोनों उँगलियाँ [अर्थात् अनामिका और कनिष्ठा] अलग-अलग ऊपर की ओर उठी हों, उस हस्तमुद्रा को हंसास्य कहा जाता है। -त्रेताग्निदर्शने । निःसारे मृदुनि श्लक्ष्णे दधदेषोऽङ्गुलित्रयम् ॥२१॥ उक्त तीनों अग्नियों, सारहीन वस्तु, कोमल वस्तु और चिकनी वस्तु का भाव प्रदर्शित करने में हंसास्य हस्त का विनियोग होता है। मदिताग्रमथाग्रं तु क्षिप्तं तद्वद्विनितम् । 22 दधल्लाद्यौ(?ल्लद्यौ)तु शिथिले स्वल्पेऽसौ परिकीर्तितः ॥२२॥ यदि हलकी, शिथिल और स्वल्प वस्तु का भाव प्रदर्शित करना हो, तो उक्त तीनों उँगलियों के अग्रभाग को मर्दित कर, झटक कर या कम्पित कर हंसास्य हस्त का प्रयोग करना चाहिए। असौ दरिद्रे मन्देऽपि चञ्चलोऽसौ सतां मतः । 23 बुधैर्योज्यो विमर्दे तु निषेधेऽपि स मदितः ॥२३॥ (सताम) व्यक्तियों का अभिमत है कि दरिद्र और मूर्ख व्यक्ति के भाव-प्रदर्शन के लिए . हंसास्य हस्त का विनियोग करना चाहिए। इसी प्रकार विद्वान् व्यक्तियों के कथनानुसार युद्ध या शरीर रगड़ने तथा निषेध करने के आशय में हंसास्य हस्त को मसल कर प्रयोग में लाना चाहिए। हृयधिोमुखः स स्यात् प्राणेष्वथ निषेवणे । 24 अधो घर्षन् रताश्चासे कन्दर्पऽपि हृदि स्थितः ॥२४॥ यदि हृदय का भाव प्रदर्शित करना हो तो हंसास्य हस्त को ऊर्ध्वमुख और प्राणों के तथा किसी वस्तु के सेवन के आशय में अधोमुख रखना चाहिए। रतिक्रीड़ा के समय श्वास-प्रश्वास और कन्दर्प के भाव व्यंजित करने में भी हंसास्य हस्त को हृदय पर अवस्थित रखना चाहिए। स्तनप्रदेशविधृतः परिहासे तरौ (? रतौ) तु सः ।। ऊर्ध्वमुखो नियोज्योऽसावर्पितेऽधो मुखो मतः ॥२५॥ परिहास और रतिक्रीड़ा के प्रदर्शन में हंसास्य को ऊर्ध्वमुख करके स्तनों पर रखना चाहिए । अर्पण का भाव प्रदर्शित करने में उसे अधोमुख रखना चाहिए।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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