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________________ अशोक मल्लविरचितः नृत्याध्यायः असंयुत हस्त और उसका विनियोग ५. चतुर हस्त और उसका विनियोग -- ज्योव् ( ? प्रयोज्यौ च ) यथोचितम् । सखित्वे संयुतः स स्यात् सुखे तु हृदयस्थितः ॥ १ ॥ [ अभिनय के समय हस्तमुद्रा को ] यथोचित रूप से प्रदर्शित करना चाहिए । मित्रता का भाव अभिव्यंजित करने के लिए संयुक्त हस्त का प्रयोग करना चाहिए; किन्तु सुख के भाव को प्रदर्शित करने के लिए हाथ को हृदय पर अवस्थित करना उचित है । 1 मृदुन्यसौ । त्वधोमुखः ॥२॥ ऊर्ध्वोत्थितो नाभिदेशाद्यौवनेऽथ कार्यो रचनायां मर्दाताङ्गुष्ठकः 2 यौवन का भाव प्रदर्शित करने के लिए उत्तानावस्था में हथेली को ऊपर उठाते हुए धीरे से नाभि के पास ले जाकर रख दे । यदि रचना या निर्माण का भाव व्यंजित करना हो तो अँगूठे को मसलते हुए हथेली को औंधा कर नाभिदेश में अवस्थित करना चाहिए । श्रथ ज्ञानेच्छयोस्तोषे अनुरागे प्रतिज्ञायां श्रन्यदर्थे समर्थ च समाश्वासे गुणे चायं हृदयस्थो मतः सताम् ॥४॥ 4 लोकमान्य व्यक्तियों (सताम् ) का अभिमत है कि ज्ञान, इच्छा, सन्तोष, चिन्तन, हार्दिक भाव, अनुराग, ५९ चिन्तने हृदयेऽपि वा । स्वभावे पण्डितेऽपि च ॥३॥ विश्रब्धेऽपि तथादरे । 3
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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