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________________ कलासकरण प्रकरण ['मकरं दक्षपार्श्वस्थं पताकं वामहस्तकम् । पुरतो यत्र हंसीव यायाद्भेदः स प्रादिमः । 1728 जहाँ हंसास्य नामक दोनों हाथों की रचना करके नर्तकी हंसी की तरह अति रमणीय चरण-विन्यासों से नाना प्रकार की सुन्दर चालें चलती हुई नत्य करती है, वहाँ हंसकलास कहा गया है। यदि नर्तकी दाहिने पार्श्व में मकर हस्त तथा बायें हाथ को पताकहस्त बनाकर आगे हंसी की तरह चले, तो वह प्रथम हंसकलास होता है। द्वितीय मुकुलं हस्तमारभ्या पादाम्यां पृष्ठतो .ब्रजेत् । विचित्रलास्यभेदज्ञा हंसीवासौ द्वितीयकः । 1729 यदि (नर्तकी) मकल नामक हाथ की रचना करके पैरों से पीछ की ओर हंसी की तरह चले, तो लास्यों के भेदों के ज्ञाता उसे द्वितीय हंसकलास मानते हैं । तृतीय 1730 हस्तं हंसास्यमाधाय पार्श्वयोर्ललितां गतिम् । आलापवर्णतालानां क्रमतो यत्र नृत्यति । हंसीवासौ तृतीयोऽयं भेदः प्रोक्तः पुरातनः] । जहाँ हंसास्य नामक हाथ को बनाकर पावों में ललित चाल चलती हुई नर्तकी आलाप, अक्षर तथा ताल के क्रम से हंसी की तरह नाचती है, वहाँ पूर्वाचार्यों ने तृतीय हंसकलास माना है । समवेत रूप में बाईस कलास करणों का निरूपण समाप्त . श्रीसाम्बाशिवार्पणमस्तु १. हंसकलास के ये भेद मूलपाठ में अनुपलब्ध हैं। अत: मैंने उन्हें प्रो० रसिकलाल सी० पारिख और डॉ. प्रियबाला शाह द्वारा सम्पादित श्री कुम्भकर्ण विरचित नृत्यरत्नकोश से उद्धृत किया है-(सम्पादक)।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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