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________________ द्वितीय नृत्याध्यायः वामं करं कटौ न्यस्य परं खड्गाकृति करम् । कृत्वा सकम्पं चेदर्धचन्द्रमास्ते तदादिगः ॥ १५८२ ॥ कृत्वा कपोतमूर्ध्वं चेदधोमुष्टि करं ततः । यत्र तिर्यक् पताकाख्यं करं कुर्यात्तदाभिधा । द्वितीया खड्गपूर्वस्य कलासस्य निरूपिता ।। १५८३ ॥ ३९८ 1696 बायें हाथ को कटि पर रखकर दूसरे हाथ को खड्गाकृति (खड्ग जैसा) बनावे; फिर कम्पन सहित अर्धचन्द हस्त की रचना करे ; फिर कपोत हस्त को ऊपर, मुष्टि हस्त को नीचे तथा पताक हस्त को तिरछा करे। ऐसा करने पर द्वितीय खड्गकलास निष्पन्न होता है । तृतीय दोनों त्रिपताकहस्तों की रचना करके आगे चरण-प्रहार करने से तृतीय खड्गकलास बनता है । चतुर्थ 1694 विधाय त्रिपताकौ द्वौ यस्य यश्चरणः पुरः । घातयन्निव तत्रैतं योजयेत्स तृतीयकः ॥१५८४॥ 1697 1695 स्वस्तिकं कर्कटं धृतिमोहघातपातक्रियां मुष्टिपताकपाणी चतुरः । कुर्याच्चतुर्थकः || १५८५॥ 1698 तत्र [वि] धाश्चतुर्धोर्ध्वमधः पार्श्वद्वयोऽपि च । चतुर जन स्वस्तिक, कर्कट, मुष्टि तथा पताक नामक हाथों की रचना करके धैर्य, मोह, घात और पतन क्रिया कोकरे । ऐसा करने से चतुर्थ खविलास होता है । यदि उक्त हस्तों को ऊपर नीचे तथा दोनों पावों में भी संचालित किया जाय तो चतुर्थं खड्गकलास निष्पन्न होता है । एवं खड्कलासस्य भेदाश्चत्वार ईरितः ॥ १५८६ ॥ 1699 इस प्रकार विलास के चारों भेदों का निरूपण कहा गया है । मृगकलास (३) पादाङ्गुलीभिराक्रम्य भुवमुत्थाय मुहुर्मुहुः सन्निपात्य गर्भखिन्नमृगीव जानुनी । चेत् ॥१५८७ ।। 1700
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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