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________________ नत्याध्यायः जब चालि लास्यांग में शीघ्रता और सम्मुखता का बाहुल्य होता हो, तब वही चालिवट लास्यांग कहलाता है। ३. तुक द्रुतमन्दादिभावेन चालनं हावपूर्वकम् । 1627 लीलावतंसयुतयोः कर्णयोस्तूकमीरितम् ॥१५२१॥ लीला के लिए धारण किये गये आभूषणों से युक्त दोनों कानों को शीघ्र तथा मन्द गति से हाव-भाव पूर्वक चलाया जाय, तो तृक लास्यांग कहलाता है। ४. मन शृङ्गारससम्पन्नः कोऽप्यपूर्वो गुणो यदा । .. 1628 लक्ष्यते शिक्षिताद् योऽतिसूक्ष्मोऽभिनयभावभाक् ॥१५२२॥ . अन्य एव तु नाट्याङ्गक्रियायोगाद्यदा लयैः । 1629 तदा मनो मनोहारि सुमनोभिरिदं मतम् ॥१५२३॥ जब शृंगार रस से सम्पन्न कोई अपूर्व गुण, जो अत्यन्त सूक्ष्म तथा अभिनय के भाव का द्योतक हो और नाट्यांगक्रिया के योग से दूसरा ही हो, शिक्षित व्यक्ति से लय के साथ दिखाई पड़े, तब मनस्वी लोगों ने उसे सुन्दर मन नामक लास्यांग कहा है। ५. लेढि कोमलं मधुरं तिर्यक् सविलासं च यद् भवेत् । 1630 एकदा चालनं बाहुकटीनां सा लेढिर्मता ॥१५२४॥ सौन्दर्यभरसंपन्नः संगीतप्राप्तिसम्भवः । 1631 आनन्दातिशयः कोऽपि लेढिरित्यपरे जगुः ॥१५२५॥ बाँह और कमर का एक साथ संचालन, जो कोमल, मधुर, तिरछा तथा हाव-भावपूर्वक हो, लेढि नामक लास्यांग कहलाता है। दूसरे आचार्यों का मत है कि सौन्दर्य के भार से सम्पन्न और संगीत के संयोग से व्यत्पन्न एवं अतिशय आनन्द से युक्त लास्यांग लेडि कहलाता है । ६. उरोडकण 1632 अंसयोः स्तनयोस्तालसम्मितं चालनं भवेत् । पर्यायादेकदा वा यद् द्रुतं यद् वा विलम्बितम् ॥१५२६॥
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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