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________________ 1587 मार्गस्थित लास्यांगों का निरूपण (१) मार्गस्थित लास्यांगों (आंगिक अभिनयों) के भेद स्थितपाठ्यमथासीनं सैन्धवं पुष्पमण्डिका । 1586 प्रच्छेदकः शेषपदं द्विमूढं च त्रिमूढकम् ॥१४८७॥ वैभाविकं चित्रपदमुक्तप्रत्युक्तकं तथा । उत्तमोत्तमकं चेति द्वयधिकानि दशाब्रुवन् ॥१४८८॥ क्रमान्मार्गस्थितानीति लास्याङ्गान्यथ लक्षणम् । 1588 प्रोच्यतेऽशोकमल्लेन तेषां लक्ष्मानुसारतः ॥१४८६॥ अशोकमल्ल ने मार्गस्थित लास्यांगों के बारह भेद बताये हैं : १. स्थितपाठ्य, २. आसीन, ३. सन्धव, ४. पुष्प मण्डिका, ५. प्रच्छेदक, ६. शेषपद, ७. द्विमूढ, ८. त्रिमूढ, ९. वैभाविक, १०. चित्रपद, ११. उक्त प्रत्युक्त और १२. उत्तमोत्तम । अब उनकी गतिविधियों के अनुसार उनके लक्षण-विनियोगों का निरुपण किया जा रहा है। १. स्थितपाठय [यदा] कन्दर्पतप्ताङ्गी तन्वी [वि] रहविह्वला। 1589 स्थिता पठेत् प्राकृतं चेत् स्थितपाठयं तदोदितम् ॥१४६०॥ जब कामपीडित तथा विरह से व्याकुल युवती खड़ी होकर प्राकृत भाषा का पद्यपाठ करे, तब स्थितपाठ्य लास्यांग होता है। यथामयणप्यहुकोवताविनाए मह सोदाई कुरंगलोषणाए। 1590 सहि वल्लहसंगवंचिदाए सरणं पुम्मदलाइ जीवियस्स' ॥१४६१॥ जैसे; हे सखी ! कामदेव के क्रोध से जलायी हुई, (अतएव) डरी हुई और प्रियतम के सहवास से वंचित की हुई मुझ मगनयनी के प्राणों के रक्षक कमलदल ही हो सकते हैं। मदनप्रभुकोपतापिताया मम भीतायाः कुरङ्गालोचनायाः । सखि वल्लभसङ्घवञ्चितायाः शरणं पद्मदलानि जीवस्य ॥ (नृत्यरत्नकोश, वाल्यूम २, पृष्ठ १९९, श्लोक ७) । ३७७
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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