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________________ उत्प्लुतिकरणों का निरूपण ३६. एणप्लुत कृत्वोत्प्लवनं सूचीमन्यतमा स्वे विधाय चेद्भजते । 1398 भूमावूलस्थानं यदोत्कटासनं तदाप्लुतं चैणवम् । जब उछलने के पश्चात् सूची नामक चारी करके भूमि पर ऊर्ध्व स्थान वाले उत्कटासन को किया जाता है तब एगप्लुत करण होता है। ३७. लोहड्यञ्चित विधाय लोहडौं पश्चादञ्चितं क्रियते द्रुतम् । 1399 यत्र तत्करणं प्रोक्तं लोहड्यञ्चितसंज्ञिकम् । जहाँ लोहडी करण करने के पश्चात् शीघ्रता से अञ्चित करण किया जाता है वहाँ लोहड्यञ्चित करण होता है। ३८. सच्यन्त करणे यत्र यत्रान्ते समसूच्यादि सूचिषु । 1400 एकं कुर्यात्तदा तत्तत्सूच्यन्तमिति कथ्यते । करण में जहाँ-जहाँ अन्त में समसूचि आदि सूचि स्थानकों में से किसी एक को सम्पन्न किया जाता है, वहाँ-वहाँ सूच्यन्त करण होता है। अड़तीस उत्प्लुतिकरणों का निरूपण समाप्त
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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