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________________ नृत्याध्यायः उत्प्लुतिकरणों के अड़तीस भेद होते हैं : १. अञ्चित, २. एकपादाञ्चित, ३. समपादाञ्चित, ४. तियंगचित, ५. भैरवाञ्चित, ६. भ्रान्तपादाञ्चित ७ दण्डप्रणामाञ्चित, ८. कर्त्तर्यञ्चित, ९. लंकावाहाउिचत, १०. समञ्चित ११. बालिबन्धाञ्चित, १२. क्षेत्राञ्चित, १३. स्कन्धाञ्चित, १४. अलग, १५. ऊर्ध्वालग, १६. अन्तरालग, १७. कूर्मालग, १८. लोहडी १९. एकपादलोहडी २०. विचित्रलोहडी, २१. बाहुबन्धलोहडी, २२. कर्त्तरीलोहडी, २३. समकर्त्तरीलोहडी, २४. चतुर्मु खलोहडी, २५. अलगाञ्चित, २६. जलशयन, २७. दर्पशरण, २८. नागबन्ध, २९. मत्स्यकरण ३० तिर्यक्करण, ३१. तिर्थक्स्वस्तिक, ३२. कपालचूर्णन, ३३. नतपृष्ठक, ३४. करस्पर्श, ३५. स्कन्धभ्रान्त, ३६. एणप्लुत, ३७. लोहडयाञ्चित और ३८. सूच्यन्त । उच्यते क्रमतोऽमीषां मया लक्ष्यानुसारतः ॥१३१४॥ अब लक्ष्य के अनुसार इन करणों का क्रमशः लक्षण निरूपित किया जा रहा है । १. अञ्चित विधाय समपादाख्यं स्थानमुत्तानितो यदा । उत्पतेदञ्चितं प्रोक्तं तदा करणवेदिभिः ॥ १३१५॥ जब समपाद नामक स्थानक को बनाकर उत्तान होकर उछला जाय, तब करण के ज्ञाताओं ने उसे अञ्चित करण बताया है। २. एकपादाञ्चित विद्वानों ने एकपादाञ्चित करण को अर्थ के अनुरूप बताया है । ३. समपादाञ्चित एकपादाञ्चितं प्रोक्तमन्वर्थं करणं बुधः ॥१३१६ ॥ 1363 1362 कृत्वोवस्यौ समौ पादौ स्कन्धेनाक्रम्य भूतलम् । पादाबुल्ला लन्यत्र परिवर्तनमाचरेत् । तिर्यकक्रमादिदं प्रोक्तं समपादाञ्चितं बुधैः ॥१३१७॥ यदि सम नामक दोनों चरणों को ऊर्ध्वमुख करके कन्धे से भूतल को छूकर दोनों चरणों को सहलाते हुए तिरछे क्रम से घुमाया जाय, तो उसे विद्वानों ने समपादाञ्चित करण कहा है। ४. तियंगञ्चित तिर्यगञ्चितम् ॥ १३१८ ॥ 1365 समपादात्कृते तिर्यगुत्प्लवे समस्थित पैर से तिरछा कूदने पर तिर्यगञ्चित करण होता है । ३३६ 1364
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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