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________________ नश्याध्यायः पहले तलवे से कूटकर पैर को आगे और पीछे करके रखा जाय; और पश्चात् उँगलियों के पृष्ठभाग से एक पैर को अपने स्थान पर कूटा जाय । ऐसा करने से अर्थ के अनुरूप पुरःपश्चातसरा चारी बनती है। २. पश्चात्पुरः सरा एषा पश्चात्पुरःक्षेपान्मता पश्चात्पुरःसरा ॥१०६०॥ 1109 यदि पैर को पीछे और आगे करके चलाया जाय, तो वह पश्चात्पुरः सरा चारी कहलाती है। ३. मध्यचक्रा कुट्टितः स्थापितो यत्र भ्रमितः कुट्टितः पुनः । स्थाने सा मध्यचक्रेति चारी प्रोक्ता विचक्षणः ॥१०६१॥. .1110 जहाँ पैर कूटा जाय, रखा जाय, घुमाया जाय और फिर स्थान पर कूटा जाय, तो उसे विद्वानों ने मध्यचक्राचारी कहा है। ४. एकपदकुट्टिता स्वपार्वेकुट्टितः पूर्व स्थापितोगुलिपृष्ठतः । कुट्टितश्चेत्पुनः स्थाने तदैकपदकुट्टिता ॥१०६२॥ ll पहले एक पैर अपने पार्श्व में कूटा जाय; उसके बाद उँगलियों के पृष्ठभाग से अवस्थित किया जाय; और पुनः स्थान में कूटा जाय, तो उसे एकपदकुट्टिता चारी कहते हैं। ५. पदद्वयनिकुट्टा पदद्वयनिकुट्टा स्यात् सैवाङ्घ्रिद्वयनिर्मिता ॥१०६३॥ यदि दोनों पैरों से उक्त चारी बनायी जाय, तो उसे पवद्वयनिकुट्टा चारी कहते हैं। ६. पादस्थितिनिकुट्टिता यस्यां निकुट्टितः पादः स्थितोऽथाङ्गुलिपृष्ठतः । 1112 इतस्ततः कुट्टितः सा पादस्थितिनिकुट्टिता ॥१०६४॥ जिस चारी में कूटा हुआ एक पैर उँगलियों के पृष्ठभाग से अवस्थित होकर (पुनः) इधर-उधर कूटा जाय, उसे पादस्थितिनिकिटता चारी कहते हैं । ७. क्रमपादनिकुट्टिका एवं द्वयनिकृता सैव क्रमपादनिकुट्टिका ॥१०६५॥ 1113 २८४
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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