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________________ नत्याध्यायः ११. सूची कुञ्चिताघ्रि समुत्क्षिप्य प्रसायँतस्य जङ्घिकाम् । 1031 परा र्जानुपर्यन्तमूरुपर्यन्तमेव च ॥१०११॥ अग्रयोगेन चेदेतमध्रि यत्र निपातयेत् । 1032 समवाचि तदा सूची सा नृत्तसुविचक्षणैः ॥१०१२॥ जब कञ्चित पैर को ऊपर उठाकर उसकी जंघा को दूसरे पैर के घटने तक या ऊरु तक फैलाकर अग्रयोग से उस पैर को नीचे गिरा दिया जाय, तब नाट्याचार्यों ने उसे सूची आकाशचारी कहा है। १२. दोलापादा कुञ्चितं पादमुद्धत्य पार्श्वयोर्दोलयेत् ततः । 1033 यत्र पार्ष्या निजे पार्वे तं क्षिपेच्चेत् तदोदिता । दोलापादाभिधा त्वेषा वीरसिंहसुसूनुना ॥१०१३॥ 1034 जब कुञ्चित पैर को उछालकर दोनों पावों में हिलाया-डलाया जाय; उसके बाद उसे एड़ी से अपने पार्श्व में फेंका या गिरा दिया जाय, तो अशोकमल्ल ने उसे दोलापादा आकाशचारी कहा है। १३. उद्वत्ता प्राविद्धाङ्क्रिस्थितान्योरुपाष्णिकं प्रविधापयेत् । उत्प्लुत्य भ्रमरों दत्वा धरायां विनिपातयेत् ॥१०१४॥ 1035 यत्रान्याध्रि समुद्धृत्य तदोवृत्ता भवेदसौ । अस्या नामान्तरं केचिच्चिरावर्तेत्यवादिषुः ॥१०१५॥ 1036 जब मुड़े हुए (आविद्ध) एक पैर को ऊरु सहित, दूसरे पैर की एड़ी पर अवस्थित किया जाय; फिर उछल कर तथा चक्कर काट कर दूसरे पैर को उठा देने के बाद गिरा दिया जाय, तो उसे उदवत्ता आकाशचारी कहते हैं । कोई इसे चिरावर्ता अपर नाम से अभिहित करते हैं। १४. आविद्धा जङ्घास्वस्तिकविश्लेषात् कुञ्चितं चरणं पुरः । वक्रमेकं प्रसार्य स्वपार्वे तु यदि पातयेत् । 1037 उपपाष्र्ण्यन्तरं पार्ष्या तदाविद्धति कीर्तिता ॥१०१६॥ २७०
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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