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________________ स्थानक प्रकरण जहाँ उक्त मण्डल आसन के मान से बाँधा उरु आकाश में स्थित हो। एक (बाँया) पैर आगे फैलाया हुआ हो, दूसरा (दाहिना) पैर पाँच ताल के अन्तर पर स्थित हो, और दोनों पैर यस्र मद्रा में हों, तो उसे आलीढ़ स्थानक कहते हैं। रुद्र उसके अधिष्ठाता देवता हैं। रोषेाजनिते जल्पे तद्भवेदुत्तरोत्तरे ॥८६॥ 913 संहर्षास्फोटनादौ च मल्लानां वीरताकृते । सन्धानेऽपि च शस्त्राणां.................. ॥६६ 914 रोष तथा ईर्ष्या से उत्पन्न एक-दूसरे के उत्तर-प्रत्युत्तर ,पहलवानों के अत्यन्त हर्ष से ताल ठोंकने और वीरता के लिए शस्त्रों के सन्धान करने के अभिनय में उसका विनियोग होता है। ६. प्रत्यालीढ़ और उसका विनियोग प्रत्यालीढं भवेत्स्थानमालीढाङ्गविपर्ययात् । अनेन मोक्षयेच्छस्त्रमालीढस्थानसन्धितम् ॥६००॥ 915 आलीढ़ स्थानक के विपरीत प्रत्यालीढ़ स्थानक की रचना होती है । आलीढ़ स्थानक द्वारा निशाना लगाये हुए शस्त्र-विमोक्षण के अभिनय में उसका विनियोग होता है। आठ स्त्री स्थानक (२) १. आयत और उसका विनियोग तालान्तरे यदा वामस्त्र्यस्रोध्रिदक्षिणः समः । प्रसन्नो मुखरागः स्यात्समुन्नतमुरस्तथा ॥९०१॥ 916 समुन्नतकटिहस्तो दक्षिणः स्यानितम्बगः । वामो लताकरो यत्र तदा तत् समुदीरितम् ॥६०२॥ 917 रमात्र देवताजब बायाँ पैर एक ताल की दूरी पर व्यस्र मुद्रा में तथा दाहिना पैर सम हो; मुखाकृति प्रसन्न हो; वक्षःस्थल तथा कटि समुन्नत हों; दाहिना हाथ नितम्बगामी तथा बायाँ हाथ लताकर मद्रा में हो, तो उसे आयत स्थानक कहते हैं । इस आसन की अधिष्ठातृ देवी लक्ष्मी हैं। -तत्स्यात्पुष्पाञ्जलिविसर्जने । रङ्गावतरणारम्भे सखीप्रियतमादिभिः ॥६०३॥ 918 प्राभाषणेऽभिलाषे च रोषे मानावलम्बने । २४७ .
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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