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प्राक्कथन
अशोकमल्ल ने पूर्वाचार्यों के नाम-निर्देश के अतिरिक्त नत्याध्याय के विभिन्न स्थलों पर विभिन्न रूपों में पूर्ववर्ती विद्वानों एवं आचार्यों के केवल मतों का उल्लेख किया है । इस रूप में उन्होंने पूर्वाचार्यः (१३२), पूर्वसूरिभिः (३२५, ३५३, ४५५, ५०१, ५०९, ५२३, ७३१, ७९४ आदि ), प्राच्यसूरिभिः (७७८), प्राक्तनर्बुधः (७८०, १३३८ ), पूर्वसूरयः (८४३) और प्राक्तने मते (१३८६) आदि से प्राचीन नाटयाचार्यों के मतों को उद्धृत किया है । इसके अतिरिक्त उन्होंने मतः सताम् ( १, १५० आदि ) या सतो मतः (२३, ५४ आदि ) का भी विभिन्न स्थानों पर उल्लेख किया है।
__इस दृष्टि से नृत्याध्याय में अन्य भी प्रचुर उद्धरण देखने को मिलते है; यथा बुधैर्योज्यः (१५), कथितो बुधैः (३३, ३९), बुरुक्तानि (४०), बुधैः (७५, २११, २१९, ४१२ ), बुधाः ( २५५ ), धीरः (७४, २४१ ), सुधीः ( ६२०, ६३१ ), मनीषिभिः ( ६२, ७२, ९२, ३८६, ४८४, १०२७), पण्डितः (७९), पण्डिताः (२९७), जैः(८३४), विद्वद्भिः (८५७), सद्भिः (१६३, २३९, ३५४, ४२०), विचक्षणः (८९, ८६०, ९८६, १०६७), धीमान् (६१९, ६५८) और कलाभिज्ञाः(४३२) आदि प्रसंग अवलोकनीय हैं।
अभिनय के सामान्य सन्दर्भो के अतिरिक्त अशोकमल्ल ने विशेष विधाओं पर तत्तत् विषयों के विशिष्ट आचार्यों के मतों का भी स्थान-स्थान पर उल्लेख किया है। उदाहरण के लिए करगपण्डिताः (११४७), करणवेदिभिः (१३१५), करगकोविदः (१३२६), कण्ठरेचककोविदः (१४२४), लक्ष्यवेदिभिः (५१९) और लक्ष्मलक्ष्यविशारदाः (५५३, ७३३, ७९२ तथा ८३३ ) आदि स्थल द्रष्टव्य हैं।
इसी प्रकार नृत्त और नृत्य के लक्षण-विनियोगों के सन्दर्भो में अशोकमल्ल ने विभिन्न पूर्वाचार्यों के मतों का उल्लेख किया है। उदाहरण के लिए नत्यवित (६४८), नत्यः (७७५, ११९५), नत्यविचक्षणः (१११५), नृत्यपण्डितः (३७, ६०, ९४, ३६९,३७६, ५३१), नाटयवित् (६४८), नाटयज्ञः (६५०), नाटयकोविदः (२८१, ४४५, ६८४ ), नृत्तविचक्षणः (४४२, ८१४, १३०३), नृत्तविचक्षणाः ( १००४, १२४१ ), नृत्तसुविचक्षणः (१०१२), नृत्तवेदिभिः ( १०७३, १११४, १२३५, १२८६, १३३५ ), नत्तवेदिनः (१०७६), नृत्तविशारदः (२७५, १२७३, १२७९), नुत्तमनीषिणः (१३८३), नत्तधीमताम् (२८६) और हस्ताभिनयपण्डितः (१०६) आदि प्रसंग उद्धरणीय है।
___ इनके अतिरिक्त केचित् (२४१, २७४, ३१०), केचन (२८५), केऽपि (६०४, ११८१) और परे (२७९) आदि के रूप में भी विभिन्न पूर्वाचार्यों के मतों को आधार मानकर उद्धृत किया गया है।
___ इस सामग्री का अनुशीलन करने पर ज्ञात होता है कि अशोकमल्ल के समय तक नाट्यशास्त्र और विशेषरूप से नत्य-अभिनय पर अनेक ग्रन्थों का निर्माण हो चुका था। इसके अतिरिक्त नाटय की कछ पद्धतियाँ ग्रन्थ रूप में निबद्ध न होकर परम्परा द्वारा मौखिक रूप में जीवित थीं। इन लोकजीवित एवं लोकानुगत पद्धतियों का उल्लेख अशोकमल्ल ने स्थान-स्थान पर किया है। शास्त्ररूप में निबद्ध और लोकप्रचलित परम्पराओं का अनुशीलन कर अशोकमल्ल ने नत्याध्याय में सभी प्रकार की सामग्री का समन्वय किया है । इस आधार पर नृत्याध्याय न केवल एक सर्वांगीण ग्रन्थ प्रतीत होता है, अपितु यह
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