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________________ नृत्याध्यायः काल]हस्तकौ कृत्वा दृष्टया बीभत्सया तथा । परावृत्ताख्यमूर्ना च प्रत्यालीढाभिधेन च । 691 स्थानकेन विनिर्देश्यो धैवतौ निपुणैनटैः ॥६६३॥ निपुण अभिताओं को चाहिए कि दोनों कांगूल हस्तों, बीमत्सा दृष्टि, परावृत्त शिर और प्रत्यालीड स्थानक की रचना करके वे धंवत स्वर का अभिनय प्रस्तुत करें। हस्तेन करिहस्तेन करिहस्तेन दीनया । 692 दृष्टयावधूतशिरसा निषादं सन्निरूपयेत् ॥६६४॥ (अभिनेता को चाहिए कि) करिहस्त, दोना दृष्टि और अवधूत शिर की रचना करके वह निषाद स्वर का अभिनय प्रस्तुत करे। सुधाब्धिमतामाश्रित्याशोकमल्लेन भूभुजा । 693 अभिनीताः स्वराः सप्त षड्जाद्याः नाटयवेदिना ॥६६५॥ नाट्यशास्त्रवेत्ता राजा अशोकमल्ल ने सुधाब्धि (? संभवत: भरत) के मत का अनुसरण करके षड्ज आदि. सात स्वरों के अभिनय का निरूपण किया है। विभिन्न अभिनय प्रयोग तं निर्दिशेत् पताकेन धिकारं चतुरेण च । 694 तों(? थों) शब्दं त्वर्धचन्द्रेण तथा टें त्रिपताकतः ॥६६६॥ पताक हस्त मुद्रा से तं शब्द का, चतुर हस्त मुदा से धिकार शब्द का, अर्धचन्द हस्त मुद्रा से, (? थों) शब्द का और विपताक हस्त मुद्रा से टे शब्द का अभिनय करना चाहिए । कर्तर्योऽस्य ततं(? ते) पञ्च वर्णा वाद्योद्भवा मया । 695 अभिनीता यथौचित्यमभिनेयाः परे बुधैः ॥६६७॥ कर्तरीमुख हस्त मुद्रा से वाद्य के पांचों वर्गों का अभिनय करना चाहिए । अन्य वर्गों के अभिनय के लिए विद्वान् जैसा उचित समझें, वैसा करें। ब्राह्मस्थः शुकतुण्डेन वामेनान्येन पाणिना । 696 तिर्यक् स्थितेनोपलाभं सूच्यास्येन विनिर्दिशेत् ॥६९८॥ ध्यानस्थ होकर वाम शुकतुण्ड हस्त तथा तिर्यक स्थित दक्षिण सूचीमुख हस्त से पकड़ने का अभिनय करना चाहिए। २०२
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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