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________________ विचित्राभिनय प्रकरण विचित्राभिनय (३) विधायोतानितो हस्तौ पताको स्वस्तिकच्युतौ । 620 शिरसोद्वाहितास्येन तथोर्ध्वप्रेक्षणेन च ॥६२५॥ । प्रदोष दिवसं रात्रि प्रभातं गगनं घनान् । 6A जलाशयान वनान्तांश्च नक्षत्राणि ग्रहान् दिशः । नानादृष्टियुतं धीरोऽभिनयेन्नाव्यनृत्ययोः ॥६२६॥ 622 धीर पुरुष को नाटय तथा नृत्य के अवसर पर दोनों पताक हस्तों को उत्तान तथा स्वस्तिक मुदा में च्युत करके उद्वाहित शिर से ऊपर ताकने या देखने के द्वारा प्रदोष, दिन, रात, प्रातःकाल, आकाश, मेघ, तालाब, बनभूमि, नक्षत्र, ग्रह और दिशाओं का अनेक दृष्टियों से समन्वित होकर अभिनय करना चाहिए । [एताभ्यामेव हस्ताभ्यां तेनैव शिरसा तथा । अधस्तात्प्रेक्षणेनापि भूमिस्थं सम्प्रदर्शयेत् ॥६२७॥ 623 हाथ की इन्हीं मुद्राओं और शिर की इसी मुद्रा से नीचे ताकते हुए भूमि पर रखी हुई वस्तु या (बने हुए स्थानों) का प्रदर्शन करना चाहिए। दृष्टचा मुकुल [या] किंचिन्नतेन शिरसापि च । - हृदि सन्देशहस्तेन सव्येनकमना नटः । 624 वितर्कितं तथा ध्यानं निर्दिशेन्नाट्यनृत्ययोः ॥६२८॥ नाट्य और नृत्य के समय नट को चाहिए कि वह सावधान होकर मुकला दृष्टि से और किञ्चित् झुके हुए शिर तथा हृदय पर रखे हुए दाहिने सन्दंश हस्त से सन्देह तथा ध्यान का अभिनय करे । विधायोद्वाहितं शीर्ष तथोज़ हंसपक्षकम् । 625 दीर्घ मानं तथोच्चत्वं प्रासादस्य प्रदर्शयेत् ॥६२६॥ उद्वाहित शिर और ऊपर हस्तपक्ष हस्त बनाकर महल की लम्बाई तथा ऊँचाई का प्रदर्शन करना चाहिए। अरालेन तथा वामभागोद्वाहितशीर्षतः । 626 नतध्वस्तनिमित्तानि श्रान्तं वाक्यं च दर्शयेत् ॥६३०॥ अराल हस्त तथा वाम भाग में उद्वाहित शिर से झुके हुए, नष्ट हुए, निमित्त, श्रान्त और वाक्य का अभिनय करना चाहिए।
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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