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________________ नत्याध्यायः बीस प्रकार के पाणि, गुल्फ और हस्तांगुलि निरूपण पाणि (एडी) के भेद बहिर्गता मिथोयुक्ता वियुक्ताङ्गुलिसङ्गता । 584 उत्क्षिप्ता पतितोत्क्षिप्ता पतितान्तर्गता तथा । पाणिरष्टविधा ज्ञेया नाम्नव व्यक्तलक्षणा ॥५६०॥ 585 एड़ी (पाणि) के आठ भेद होते हैं : १. बहिर्गता (बाहर की ओर निकली हुई), २. मिथोयुक्ता (परस्पर मिली हुई), ३. वियुक्ता (अलग-अलग हुई), ४. अंगुलिसंगता (उँगलियों से मिली हुई), ५. उत्क्षिप्ता (ऊपर को उठी हुई), ६. पतितोक्षिप्ता (गिर कर उठी हुई), ७. पतिता (गिरी हुई) और ८. अन्तर्गता (भीतर की ओर गयी हुई) । इन आठों भेदों के लक्षण उनके नामों से ही स्पष्ट हैं। गुल्फ (टखनों या घुट्टी) के भेद मिथोयुक्तौ वियुक्तौ च श्लिष्टाङ्गुष्ठौ बहिर्गतौ । अन्तर्यातौ चेति गुल्फो स्थानकादिषु पञ्चधा ॥५६१॥ 586 टखनों (गुल्फ) के पांच भेद होते हैं : १. मिथोयुक्त (परस्पर सटे हुए), २. वियक्त (अलग हुए), ३.शिलष्टांगुष्ठ (सटे हुए अंगठों वाले), ४. वहिर्गत (बाहर किये हए) और ५. अन्तर्यात (भीतर किये हए)। बाण साधते समय शरीर की मुद्रा आदि के अभिनय में उनका विनियोग होता है। करागुलि (हाथ की उंगलियों) के भेद वियुक्ताः संहता वक्राः पतिता वलितास्तथा । प्रसृताश्च तथा कुञ्चन्मूलाः सप्तविधा मताः । 587 कराङगुल्यो बुधैरुक्ता नामतो ज्ञातलक्षणाः ॥५६२॥ विद्वानों ने हाथ की उंगलियों के सात भेद बताये हैं : १. वियुक्ता (अलग हुई), २. संहता (मिली हुई), ३. वक्रा (टेढ़ी), ४. पतिता (गिरी हुई), ५. वलिता (मुड़ी हुई), ६. प्रसूता (फैली हुई) और ७. कुञ्चन्मूला (सिकुड़े हुए मूलभाग वाली) । इनके लक्षण उनके नामों से ही स्पष्ट हैं। पाँच प्रकार की चरणांगुलि निरूपण चरणांगुलि (परों की उंगलियों के) भेद प्रसारिता अधःक्षिप्ता उत्क्षिप्ता कुञ्चितास्तथा । 588 संलग्नाश्चेति पदयोरगुल्यः पञ्चधा क्रमात् ॥५६३॥ १७८
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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