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________________ उपांग प्रकरण समः सहजकार्येषु भ्रान्तो वल्लभसंगमे ॥५२॥ प्रथमेऽथ बुधरुक्तः कम्पितः सुरतेऽनिलः । मूर्छिते तु विलीनोऽथ मरुदान्दोलितो भवेत् ॥५२६॥ 534 पर्वतारोहणेऽथ स्यात् स्तम्भितः शस्त्रमोक्षणे । आघ्राणे कुसुमादीनामुच्छ्वासः परिकीर्तितः ॥५३०॥ 535 पश्चात्तापादिषु प्रोक्तो निःश्वासो नृत्तपण्डितः । वेदनादौ सूत्कृतं स्याच्छीतदुःखे तु सीत्कृतम् ॥५३१॥ 536 नखक्षते कामिनीनां निर्दयाधरपीडने । नृत्तविद्या-विशारदों का कहना है कि सम वाय का विनियोग स्वाभाविक कार्यों में होता है। इसी प्रकार अभिनय में मान्त वाय का प्रिय-समागम में, कम्पित वायु का प्रथम रति-प्रसंग में, विलीन वायु का मूर्छा में, आन्दोलित वायु का पर्वत पर चढ़ने में, स्तम्भित वायु का शस्त्र-संचालन में, उच्छ्वास वायु का पुष्प आदि सूंघने में, निःश्वास वायु का पश्चाताप आदि में, सूत्कृत वायु का वेदना में, और सीत्कृत वायु का शीत, पीड़ा, नखक्षत्रत तथा कामिनियों के अधरों का कसकर दन्तक्षत करने में विनियोग होता है। एवं लोकाद् बुधैल्ह्या नियोगा इतरेऽपि च ॥५३२॥ 537 नासानिलप्रसङ्गन मुखवातोऽपि लक्षितः ॥५३३॥ इसी प्रकार विज्ञ अभिनेताओं को चाहिए कि लोक-परम्परा के द्वारा वे अन्य वायु-भेदों तथा उनके विनियोगों को जान लें । यहाँ नासा-वाय से मुख-वायु को भी ग्रहण कर लेना चाहिए । . स प्रकार के अधरों का अभिनय अधर के भेट 538 विवर्तितो विसृष्टश्च कम्पितो विनिगूहितः । ..सन्दष्टकः समुद्गाख्योऽधरः षोदेति दर्शितः ॥५३४॥ अधरों (नीचे के ओठ) के छह भेद होते हैं, जिनके नाम हैं: १. विवर्तित, २. विसृष्ट, ३.कम्पित, ४. विनिहित, ५. सन्दष्टक और ६. समुद्गक । विकासिरेचितोवृत्तायतानन्यान् परे विदुः। 539 दूसरे आचार्यों ने अधरों के चार भेद और बताये हैं १. विकासी, २. रेचित, ३. उवृत्त और. ४. आयत । १६७
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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