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________________ नत्याध्यायः 474 विस्तीर्णा च बुधैः सोक्ता दृष्टिर्विभ्रान्तसंज्ञिका । 473 विभ्रमे सा तथा वेगे विरामेऽपि नियुज्यते ॥४६६॥ जो कहीं विश्राम नहीं पाती तथा चंचल रहती है, जिसघी पुतलियाँ खिली हुई हों और जो फैली हई हो, उसे विद्वानों ने विमान्तादृष्टि कहा है। भ्रान्ति (बेचैनी), आवेग और विराम के भाव-प्रदर्शन में उसका विनियोग होता है। १७. विलुप्ता और उसका विनियोग स्फुरितौ या पुटौ स्तब्धौ पतितावपि चेत्क्रमात् । धत्ते सा विप्लुता दृष्टिर्गदिता चापले बुधैः ।। उन्मादे च तथा? च दुःखादावापि युज्यते ॥४६७॥ 475 जो दृष्टि क्रमशः क्षुब्ध, स्थिर तथा गिरी हुई दोनों पलकों को धारण करती है (अर्थात् इन स्थितियों में वर्तमान रहती है) उसे विलुप्ता कहते हैं। चपलता, उन्माद, पीड़ा तथा दुःख आदि के अभिनय में विद्वानों ने उसका विनियोग बताया है। १८. त्रस्ता और उसका विनियोग त्रासोद्ममत्पुटद्वन्द्वा या कम्पितकनीनिका । उत्फुल्लमध्यमा त्रस्ता सा दृष्टिस्त्रासगोचरा ॥४६॥ 476 जिसकी दोनों पलके भय से घूमती हों, पुतलियाँ कांपती हों और जिसका मध्य भाग विकसित हो उसे त्रस्ता दृष्टि कहा जाता है। त्रास के अभिनय में उसका विनियोग होता है। १९. विकोशा और उसका विनियोग उत्फुल्लपुटयुग्माना यानवस्थिततारका । निनिमेषा समुत्फुल्ला विकोशा सा दृगीरिता । उग्रदर्शनविज्ञानक्रोधेषु ज्ञानगर्वयोः ॥४६६॥ जिसकी दोनों पलकों के अग्रभाग खिले हों, पुतलियाँ घमती हों, पलकें निनिमेष (अपलक) हों और जो अत्यन्त विकसित हो, वह दृष्टि विकोशा कहलाती है। भयंकर दर्शन, विज्ञान, क्रोध, पाण्डित्य और गर्व के भावों के अभिव्यंजन में उसका विनियोग होता है। १५२
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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