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________________ वक्षाभिनय के भेद अङ्गाभिनय और उनका विनियोग पाँच प्रकार का वक्षाभिनय वक्षः प्रकम्पितम् । समं निर्भुग्नमाभुग्न तथा उद्वाहिताभिधं चेति वक्षः पञ्चविधं स्मृतम् ॥ ३२७॥ वक्ष पाँच प्रकार का कहा गया है : १ सम, २. निर्भुग्न, ३. आभुग्न, ४. प्रकम्पित और ५. उद्वाहित । १. सम और उसका विनियोग यद्वक्षः 'सौष्ठवोपेतं चतुरस्राङ्गसंयुतम् । स्वभावस्थं समं प्रोक्तं स्वभावस्य निरूपणे ॥ ३२८ ॥ 339 जो वक्ष सुन्दर, सुडौल, सब अंगों के विन्यास से युक्त और स्वाभाविक या सहज हो, उसे सम कहा जाता है । स्वभाव के निरूपण में उसका विनियोग होता है । २. निर्भुग्न और उसका विनियोग पुरःस्तब्धमुरो यदुन्नतं सत्योक्तिस्तम्भमानेषु गर्वोत्सेके भाषणे च प्रहर्षादिदमिष्यते ॥ ३२६॥ निर्भुग्रमीरितम् । विस्मयदर्शने । तथा जो पीठ स्तब्ध और वक्ष उन्नत हो, उसे निर्भुग्न कहा जाता है । सत्यवचन, स्तम्भन, मान, विस्मय, गर्व और दर्पोक्ति के अभिनय में इस वक्ष का अत्यन्त हर्ष से विनियोग होता है । ३. आभुग्न और उसका विनियोग १६ 338 यन्निम्नं शिथिलं शोकहृच्छल्ययोः व्याधिभीतिविषादेषु 342 जो वक्ष निम्न और शिथिल हो उसे आभुग्न कहते हैं। शोक, हृदय में शल्य के समान चुभने वाली बात, १२१ वक्षस्तदाभुग्नमुदीरितम् । शीतमूर्च्छयोर्गर्वहर्षयोः ॥३३०॥ लञ्जासम्भ्रमयोरपि । 340 341
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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