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________________ नत्याध्यायः खटकास्यौ यदा हस्तौ मुष्टिकस्वस्तिको तदा । कपित्थावथवा मुष्टिशिखरौ स्वस्तिकाकृती ॥२६॥ यदा स्यातां तदा प्रोक्तौ मुष्टिकस्वस्तिको करौ। 305 कुश्चितौ मुष्टिरेकश्चेत् खटकास्यः परोऽश्चितः ॥२९॥ मुष्टिकस्वस्तिकावेवं प्राह कीर्तिधरस्तदा । 306 खगवर्तनिकेत्याहुरनयो म पण्डिताः ॥२६७॥ एक हाथ को अराल मुद्रा में और दूसरे को अलपल्लव मद्रा में बनाकर जब दोनों स्वस्तिक का आकार धारण करें, तब वे दोनों हस्त मुष्टिस्वस्तिक कहलाते हैं । अथवा जब दोनों कपित्थ हस्तों को मुष्टि तथा शिखर मुद्राओं में करके स्वस्तिक मुद्रा में अवस्थित किया जाय, तब उन्हें मुष्टिस्वस्तिक कहा जाता है। आचार्य कीर्तिघर का कहना है कि जब एक मुष्टि हस्त कुञ्चित और दूसरा खटकास्य हस्त अंचित हो, तब उन्हें मुष्टिस्वस्तिक कहा जाता है । कुछ विद्वानों ने मुष्टिस्वस्तिक हस्त को खड्गवर्तनिका हस्त नाम से कहा है। २१. वलित हस्त कूर्परस्वस्तिकाकारौ लताख्यौ वलितौ करौ । 307 परे तौ विधुतौ भूनि मुष्टिकस्वस्तिको जगुः ॥२६॥ केचिदन्योन्यलग्नानौ पृष्ठतो नम्रकूपरौ । 308 ऊर्ध्वानौ खटकास्यौ च तदाहुर्वलितौ करौ ॥२६॥ जब दोनों हाथों से कुहनी पर स्वस्तिक से युक्त लता हस्तों का प्रयोग किया जाय, तब उन्हें वलित हस्त कहा जाता है। दूसरे आचार्यों का मत है कि जब दोनों वलित हस्तों को शिर पर कम्पित कर दिया जाय तब उन्हें मुष्टिस्वस्तिक कहा जाता है । कुछ आचार्यों का कहना है कि जब दोनों खटकास्य हस्तों के अग्रभाग एक-दूसरे से सट जॉय और कुहनियाँ पीछे की ओर झुकी रहें तथा अग्रभाग ऊर्ध्वमुख रहें, तब उन्हें वलित हस्त कहा जाता है। २२. दण्डपक्ष हस्त यदैको हंसपक्षस्तु व्यावृत्त्या संश्रयेदुरः । 309 बाहुः प्रसारितस्तिर्यक् तदान्यः परिवर्तितः ॥३०॥ ११२
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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