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________________ नृत्याध्यायः बहु यत्न-साध्य वस्तुं, तुषार, आलिंगन, आभूषण न पहनने और सुन्दरियों की लज्जा आदि के अभिनय में उत्संग हस्त का विनियोग होता है । ९. स्वस्तिक हस्त और उसका विनियोग खटकास्यौ पताकौ वा यद्वारालौ करौ यदा । मणिबन्धस्थितौ स्यातामितरेतरपार्श्वगौ ॥ २४३ ॥ हृदयसंस्थितौ । उत्तानो वामभागस्थौ यद्वा तदा करः स्वस्तिकाख्योऽशोकमल्लेन कीर्तितः ॥ २४४ ॥ 251 यदि दोनों खटकामुख हस्तों या पताक हस्तों अथवा अराल हस्तों को एक-दूसरे की बगल में करके उनकी कलाइयों को बाँध कर उत्तान करके बाँयी ओर या हृदय पर रख दिया जाय, तो उस मुद्रा को अशोक मल्ल ने स्वस्तिक हस्त के नाम से कहा है । विच्युतोऽसौ कामिनीभिरेवमस्त्विति भाषणे । विस्तीर्णे गगनेऽम्भोधिप्रसृतौ च नियुज्यते ॥ २४५॥ कामिनियों के 'अच्छा' ऐसा कहने, विस्तृत आकाश और समुद्र - विस्तार के अभिनय में स्वस्तिक: फैला कर प्रयुक्त करना चाहिए । 250 252 हस्त को १०२ स्वस्तिकाधोमुखौ रात्रौ विच्युतोत्तानितौ दिने । मेधप्रच्छादिते तस्मिन् विच्युताधोमुखाविमौ ॥ २४६ ॥ 253 रात्रि के अभिनय में दोनों स्वस्तिक हस्तों को अधोमुख, दिन के अभिनय में फैला कर उत्तान और मेघाच्छन दिन के अभिनय में फैलाकर अधोमुख रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। १०. दोला हस्त और उसका विनियोग विरलाङ्गुली पताकौ चेल्लम्बमानौ थांसकौ । तदा दोलाभिधो हस्तो यदि दोनों पताक हस्त लम्बायमान तथा शिथिल या ढीले हों और उनकी उँगलियाँ अलग-अलग हों, तो उसे बोला हस्त कहते हैं । - विषादे मदमूच्छंयोः ॥२४७॥ 254
SR No.034223
Book TitleNrutyadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokmalla
PublisherSamvartika Prakashan
Publication Year1969
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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